रोज़ो का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसी तरह से जो रोज़े मन्नत की वजह से मुऐय्यन दिनों में वाजिब हुए हों और उसने हैज़ की वजह से उन रोज़ो को न रखा हो , तो उनकी क़ज़ा ज़रूरी है।
- तो अब ये ही होगा आने वाला समय हिंदुस् तानी भाषा का है अब न कुंतल श् यामल चलना है और न ही शबो रोज़ो माहो साल चलना है अब तो वही कविता पसंद की जाएगी जो आम आदमी का भाषा में बात करेगी ।
- तथा शाफईया और हनाबिला के फुक़हा ने इस बात को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि : रमज़ान के बाद शव्वाल के छः दिनों का रोज़ा रखना एक साल फर्ज़ रोज़ा रखने के बराबर है , अन्यथा अज्र व सवाब का कई गुना बढ़ा दिया जाना तो सामान्य रूप से नफली रोज़ो में भी प्रमाणित है क्योंकि नेकी को बढ़ाकर उसके दस गुना बराबर कर दिया जाता है।
- नफली इबादतों में नफली रोज़ो की एक एलग महत्वपूर्णता है , जिस के बहुत ज़्यादा लाभ हासिल होते हैं, इन्हीं नफली रोज़ो में शाबान के महीने के रोज़े भी हैं, शअबान का महीना रमज़ान के महीने से पहले आता है, गोया कि शअबान के नफली रोज़े रमज़ान के फर्ज़ रोज़े के स्वागत के लिए है, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़ा रखते थे।
- नफली इबादतों में नफली रोज़ो की एक एलग महत्वपूर्णता है , जिस के बहुत ज़्यादा लाभ हासिल होते हैं, इन्हीं नफली रोज़ो में शाबान के महीने के रोज़े भी हैं, शअबान का महीना रमज़ान के महीने से पहले आता है, गोया कि शअबान के नफली रोज़े रमज़ान के फर्ज़ रोज़े के स्वागत के लिए है, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़ा रखते थे।
- 3 . सितारों से आगे सितारों से आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तेहाँ और भी हैं तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़िज़ाएँ यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी है ं क़नाअत न कर आलमे रंगोबू पर चमन और भी आशियाँ और भी है ं तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा तेरे सामने आसमाँ और भी है ं इसी रोज़ो शब में उलझ कर न रह जा के तेरे ज़मानो मकाँ और भी हैं गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन मैं यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं।
- नफली इबादतों में नफली रोज़े की एक एलग महत्वपूर्णता है , जिस के बहुत ज़्यादा लाभ हासिल होते हैं , इन्हीं नफली रोज़ो में शाबान के महीने के रोज़े भी हैं , शअबान का महीना रमज़ान के महीने से पहले आता है , गोया कि शअबान के नफली रोज़े रमज़ान के फर्ज़ रोज़े के स्वागत के लिए है , प्रिय रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़ा रखते थे जैसा कि आइशा ( रज़ी अल्लाहु अन्हा ) वर्णन करती हैं।