वायु कोण का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- आग्नेय कोण में होने से बच्चा चिड़चिड़ा होता है और वायु कोण में पढ़ने से सामने न हो दीवार : - बच्चा जहाँ पढ़ता है उससे पाँच-छः फीट की दूरी तक कोई दीवार नहीं होना चाहिए।
- आग्नेय और वायु कोण से बचें : - वास्तु विशेषज्ञ के अनुसार जिस कमरे में बच्चा पढ़ता है उसे आग्नेय यानी पूर्व और दक्षिण एवं वायु अर्थात् उत्तर व पश्चिम दिशा में बिलकुल भी नहीं होना चाहिए।
- आग्नेय और वायु कोण से बचें : - वास्तु विशेषज्ञ के अनुसार जिस कमरे में बच्चा पढ़ता है उसे आग्नेय यानी पूर्व और दक्षिण एवं वायु अर्थात् उत्तर व पश्चिम दिशा में बिलकुल भी नहीं होना चाहिए।
- वास्तु भूमि की पूर्व दिशा में स्नान गृह अग्नि कोण में पाक गृह दक्षिण में शयनघर नैऋत्य में शस्त्रागार , पश्चिम में भोजन गृह वायु कोण में धन धान्यादि रखने का घर उत्तर में देवताओं का घर और ईशान कोण में जल का स्थान रखना चाहिये,और आग्नेय कोण से शुरु करके पहले रसोई,फ़िर दूध घी निकालने का स्थान,फ़िर शौचालय, उसके बाद विद्याभ्यास,फ़िर स्त्री सहसवास अरु औषिधि और श्रंगार सामग्री का,बनाना शुभ कहा गया है।
- प्रतिपदा और नवमी तिथि को योगिनी पूर्व दिशा में रहती है , तृतीया और एकादशी को अग्नि कोण में त्रयोदशी को और पंचमी को दक्षिण दिशा में चतुर्दशी और षष्ठी को पश्चिम दिशा में पूर्णिमा और सप्तमी को वायु कोण में द्वादसी और चतुर्थी को नैऋत्य कोण में,दसमी और द्वितीया को उत्तर दिशा में अष्टमी और अमावस्या को ईशानकोण में योगिनी का वास रहता है,वाम भाग में योगिनी सुखदायक,पीठ पीछे वांछित सिद्धि दायक,दाहिनी ओर धन नाशक और सम्मुख मौत देने वाली होती है.
- वास्तु भूमि की पूर्व दिशा में स्नान गृह अग्नि कोण में पाक गृह दक्षिण में शयनघर नैऋत्य में शस्त्रागार , पश्चिम में भोजन गृह वायु कोण में धन धान्यादि रखने का घर उत्तर में देवताओं का घर और ईशान कोण में जल का स्थान रखना चाहिये , और आग्नेय कोण से शुरु करके पहले रसोई , फ़िर दूध घी निकालने का स्थान , फ़िर शौचालय , उसके बाद विद्याभ्यास , फ़िर स्त्री सहसवास अरु औषिधि और श्रंगार सामग्री का , बनाना शुभ कहा गया है।
- प्रतिपदा और नवमी तिथि को योगिनी पूर्व दिशा में रहती है , तृतीया और एकादशी को अग्नि कोण में त्रयोदशी को और पंचमी को दक्षिण दिशा में चतुर्दशी और षष्ठी को पश्चिम दिशा में पूर्णिमा और सप्तमी को वायु कोण में द्वादसी और चतुर्थी को नैऋत्य कोण में , दसमी और द्वितीया को उत्तर दिशा में अष्टमी और अमावस्या को ईशानकोण में योगिनी का वास रहता है , वाम भाग में योगिनी सुखदायक , पीठ पीछे वांछित सिद्धि दायक , दाहिनी ओर धन नाशक और सम्मुख मौत देने वाली होती है .