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विभावसु का अर्थ

विभावसु अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. घोर युद्ध करते करते श्री कृष्ण ने मुर दैत्य सहित मुर दैत्य छः पुत्र - ताम्र , अन्तरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण - का वध कर डाला।
  2. घोर युद्ध करते करते श्री कृष्ण ने मुर दैत्य सहित मुर दैत्य छः पुत्र - ताम्र , अन्तरिक्ष , श्रवण , विभावसु , नभश्वान और अरुण - का वध कर डाला।
  3. घोर युद्ध करते करते श्री कृष्ण ने मुर दैत्य सहित मुर दैत्य छः पुत्र - ताम्र , अन्तरिक्ष , श्रवण , विभावसु , नभश्वान और अरुण - का वध कर डाला।
  4. बैठक के 22 दिन बाद सिटी रिपोर्टर विशाल भदौरिया , विभावसु तिवारी व फोटो ग्राफर विक्रम प्रजापति ने शहर के छह पेट्रोलपंपों की पड़ताल की तो पता चला बैठक के निर्णय को ताक पर रखा जा चुका है।
  5. बैठक के 22 दिन बाद सिटी रिपोर्टर विशाल भदौरिया , विभावसु तिवारी व फोटो ग्राफर विक्रम प्रजापति ने शहर के छह पेट्रोलपंपों की पड़ताल की तो पता चला बैठक के निर्णय को ताक पर रखा जा चुका है।
  6. महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा , शम्बर , अरिष्ट , हयग्रीव , विभावसु , अरूण , अनुतापन , धूम्रकेश , विरूपाक्ष , दुर्जय , अयोमुख , शंकुशिरा , कपिल , शंकर , एकचक्र , महाबाहु , तारक , महाबल , स्वर्भानु , वृषपर्वा , महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई।
  7. महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा , शम्बर , अरिष्ट , हयग्रीव , विभावसु , अरूण , अनुतापन , धूम्रकेश , विरूपाक्ष , दुर्जय , अयोमुख , शंकुशिरा , कपिल , शंकर , एकचक्र , महाबाहु , तारक , महाबल , स्वर्भानु , वृषपर्वा , महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई।
  8. पर , अब और नहीं, अवहेला अधिक नहीं इस स्वर की, ठहरो आवाहन अनंत के, मूक निनद प्राणॉ के! पंख खोल कर अभी तुम्हारे साथ हुआ जाता हूँ दिन-भर लुटा प्रकाश, विभावसु भी प्रदोष आने पर सारी रश्मि समेट शैल के पार उतर जाते हैं बैठ किसी एकांत, प्रांत, निर्जन कन्दरा, दरी में अपना अंतर्गगन रात में उद्भासित करने को तो मैं ही क्यॉ रहूँ सदा ततता मध्याह्न गगन में?
  9. पर , अब और नहीं , अवहेला अधिक नहीं इस स्वर की , ठहरो आवाहन अनंत के , मूक निनद प्राणॉ के ! पंख खोल कर अभी तुम्हारे साथ हुआ जाता हूँ दिन-भर लुटा प्रकाश , विभावसु भी प्रदोष आने पर सारी रश्मि समेट शैल के पार उतर जाते हैं बैठ किसी एकांत , प्रांत , निर्जन कन्दरा , दरी में अपना अंतर्गगन रात में उद्भासित करने को तो मैं ही क्यॉ रहूँ सदा ततता मध्याह्न गगन में ? नए सूर्य को क्षितिज छोड़ ऊपर नभ में आने दो .
  10. पर , अब और नहीं , अवहेला अधिक नहीं इस स्वर की , ठहरो आवाहन अनंत के , मूक निनद प्राणॉ के ! पंख खोल कर अभी तुम्हारे साथ हुआ जाता हूँ दिन-भर लुटा प्रकाश , विभावसु भी प्रदोष आने पर सारी रश्मि समेट शैल के पार उतर जाते हैं बैठ किसी एकांत , प्रांत , निर्जन कन्दरा , दरी में अपना अंतर्गगन रात में उद्भासित करने को तो मैं ही क्यॉ रहूँ सदा ततता मध्याह्न गगन में ? नए सूर्य को क्षितिज छोड़ ऊपर नभ में आने दो .
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