सर्वज्ञत्व का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ( ११) यह बुद्धों का उपाय-कौशल्य है कि इस नीति का उपदेश देतेहैं कि सर्वज्ञत्व की प्राप्ति के बिना सच्चा निर्वाण नहीं हो सकता.
- उसका कारण यह है कि यहाँ योगी को सब पदार्थो के ज्ञान के लिए सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जाता है एवं उसके बाद बिंदुभेद करने पर वह उस ज्ञान का भी अतिक्रमण कर लेता है।
- उसका कारण यह है कि यहाँ योगी को सब पदार्थो के ज्ञान के लिए सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जाता है एवं उसके बाद बिंदुभेद करने पर वह उस ज्ञान का भी अतिक्रमण कर लेता है।
- प्रमाण-मीमांसा के अंतर्गत अनेकान्तवाद , प्रमाण , पारमार्थिक प्रत्यक्ष , इन्द्रिय ज्ञान का स्वरूप तथा सीमा , परोक्ष के प्रकार-भेद , अनुमानावयव , निग्रह-स्थान , सर्वज्ञत्व की सिद्धि तथा प्रमाण-प्रमेय आदि सभी विषयों का तात्विक विवेचन किया गया है।
- प्रमाण-मीमांसा के अंतर्गत अनेकान्तवाद , प्रमाण , पारमार्थिक प्रत्यक्ष , इन्द्रिय ज्ञान का स्वरूप तथा सीमा , परोक्ष के प्रकार-भेद , अनुमानावयव , निग्रह-स्थान , सर्वज्ञत्व की सिद्धि तथा प्रमाण-प्रमेय आदि सभी विषयों का तात्विक विवेचन किया गया है।
- ब्रह्ववैवर्त पुराण में बहुत सी सिद्धियों का वर्णन है जैसे सर्वकामावसायिता , सर्वज्ञत्व , दूरश्रवण , परकायप्रवेशन , वाक् सिद्धि , कल्पवृक्षत्व , सृष्टि , संहारकरणसामथ्र्य , अमरत्व , सर्वन्यायकत्व इससे अन्यत्र कुल 18 प्रकार की सिद्धियों शास्त्रों में वर्णित है।
- ब्रह्ववैवर्त पुराण में बहुत सी सिद्धियों का वर्णन है जैसे सर्वकामावसायिता , सर्वज्ञत्व , दूरश्रवण , परकायप्रवेशन , वाक् सिद्धि , कल्पवृक्षत्व , सृष्टि , संहारकरणसामथ्र्य , अमरत्व , सर्वन्यायकत्व इससे अन्यत्र कुल 18 प्रकार की सिद्धियों शास्त्रों में वर्णित है।
- सर्वकामावसायिता 2 . सर्वज्ञत्व 3 . दूरश्रवण 4 . परकायप्रवेशन 5 . वाक् सिद्धि 6 . कल्पवृक्षत्व 7 . सृष्टि 8 . संहारकरणसामर्थ्य 9 . अमरत्व 10 सर्वन्यायकत् व. कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है .
- सर्वकामावसायिता 2 . सर्वज्ञत्व 3 . दूरश्रवण 4 . परकायप्रवेशन 5 . वाक् सिद्धि 6 . कल्पवृक्षत्व 7 . सृष्टि 8 . संहारकरणसामर्थ्य 9 . अमरत्व 10 सर्वन्यायकत् व. कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है .
- याय का साधारण अर्थ है - वीतरागप्रणीत शास्त्रों का अध्ययन करना| इससे उन कर्मों का क्षय होता है , जो ज्ञान पर आवरण डाले हुए हैं| ज्यों-ज्यों हम स्वाध्याय करते जायेंगे, त्यों-त्यों ज्ञानीवरणीय कर्म क्षीण होते जायेंगे और धीरे-धीरे हमें पूर्ण ज्ञान या सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जायेगा|