हाटक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ( २ ) तदनन्तर उन्हें जीतकर और उनसे कर ले गुह्यकों से रक्षित ' हाटक ' नाम के देश में चले गये।
- श्रीखंड चित्र दृग अंजन संग साजै , मानौ त्रिबेनि नित ही घर ही बिराजै हाटक हंस चल्यो उड़िकै नभ में दुगुनी तन ज्योति भई।
- जाम्बूनद , शातकौम्भ , हाटक , वेटक , श्रृंगी , शुक्तिज , जातरूप , रसविद्ध तथा आकरउद्धत- इन 9 तरह के सोने की जातियों और रत्नों को मिलाकर निम्नलिखित अलंकार बने होते थे।
- जाम्बूनद , शातकौम्भ , हाटक , वेटक , श्रृंगी , शुक्तिज , जातरूप , रसविद्ध तथा आकरउद्धत- इन 9 तरह के सोने की जातियों और रत्नों को मिलाकर निम्नलिखित अलंकार बने होते थे।
- स्कंध ५ अध्याय २ ४ में अतल लोक का वर्णन आया है जहा सत्रीया स्वंय पुरुष को हाटक रश पीला कर मदहोश करती है और जब वे धुत हो जाते है तो उनसे स्वंय चिपट जाती है और नंगा कर भोग में संगलन हो जाती है !
- परन्तु जब हम देखते हैं कि महाभारत में किम्पुरुषवर्ष के बाद हाटक , हाटक के बाद मानसरोवर, मानसरोवर के बाद समीप ही गन्धर्व और गन्धर्व के बाद हरिवर्ष यानी उत्तर-कुरु है, तो हमें कहना पड़ता है कि यह हरिवर्ष थियानशान-पर्वत के दक्षिण और पामीर के पूर्ववर्ती प्रदेश का नाम रहा होगा।
- परन्तु जब हम देखते हैं कि महाभारत में किम्पुरुषवर्ष के बाद हाटक , हाटक के बाद मानसरोवर, मानसरोवर के बाद समीप ही गन्धर्व और गन्धर्व के बाद हरिवर्ष यानी उत्तर-कुरु है, तो हमें कहना पड़ता है कि यह हरिवर्ष थियानशान-पर्वत के दक्षिण और पामीर के पूर्ववर्ती प्रदेश का नाम रहा होगा।
- परन्तु जब हम देखते हैं कि महाभारत में किम्पुरुषवर्ष के बाद हाटक , हाटक के बाद मानसरोवर, मानसरोवर के बाद समीप ही गन्धर्व और गन्धर्व के बाद हरिवर्ष यानी उत्तर-कुरु है, तो हमें कहना पड़ता है कि यह हरिवर्ष थियानशान-पर्वत के दक्षिण और पामीर के पूर्ववर्ती प्रदेश का नाम रहा होगा।
- परन्तु जब हम देखते हैं कि महाभारत में किम्पुरुषवर्ष के बाद हाटक , हाटक के बाद मानसरोवर , मानसरोवर के बाद समीप ही गन्धर्व और गन्धर्व के बाद हरिवर्ष यानी उत्तर-कुरु है , तो हमें कहना पड़ता है कि यह हरिवर्ष थियानशान-पर्वत के दक्षिण और पामीर के पूर्ववर्ती प्रदेश का नाम रहा होगा।
- परन्तु जब हम देखते हैं कि महाभारत में किम्पुरुषवर्ष के बाद हाटक , हाटक के बाद मानसरोवर , मानसरोवर के बाद समीप ही गन्धर्व और गन्धर्व के बाद हरिवर्ष यानी उत्तर-कुरु है , तो हमें कहना पड़ता है कि यह हरिवर्ष थियानशान-पर्वत के दक्षिण और पामीर के पूर्ववर्ती प्रदेश का नाम रहा होगा।