११वाँ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- *मुहम्मद अपनी शायरी पर नाज़ करते हुए कहते हैं - - - ' ' काफ़िर कुरआन को सुनकर कहते हैं यह तो निरा और साफ़ जादू है.” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (७) मगर शरअ (धर्म विधान) और शरह (व्याख्या) दोनों के लिए अनपढ़ नबी ने मुश्किल खड़ी कर दी है.
- “आप का दिल इस बात से तंग होता है कि वह कहते हैं कि उन पर कोई खज़ाना नाज़िल क्यूं नहीं हुआ या उनके हमराह कोई फ़रिश्ता क्यूं नहीं आया ? आप तोसिर्फ़ डराने वाले हैं.” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (१२) मुहम्मद की मक्र मुसलमानों के दिमाग के दरीचे खोलने के लिए यह क़ुरआनी आयते ही काफी हैं।
- “अगर हम इन्सान को अपनी मेहरबानी का मज़ा चखा कर छीन लेते हैं तो वह न उम्मीद और ना शुक्रा हो जाता है और जब किसी मेहरबानी का मज़ा चखा देते हैं तो इतराने और शेखी बघारने लग जाता है . ” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (९-११) ऐसी बातें कोई खुदाए अज़ीम तर नहीं बल्कि एक कम ज़र्फ़ इंसान ही कर सकता है.
- “अल्लाह छ दिनों में कायनात की तकमील को फिर दोहराता है , इसमें एक नई बात जोड़ता है कि इसके पहले अर्श पानी पर था ताकि तुम्हें आजमाए कि तुम में अच्छा अमल करने वाला कौन है?” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (७) एक साहब एक बड़े इदारे में डाक्टर हैं, फ़रमाने लगे कि कुरआन को समझना हर एक के बस की बात नहीं.
- उन्हों ने फ़रमाया अल्लाह तअल बशर्त अगर उसे मंज़ूर है , तुम्हारे सामने लावेगा और तुम उसको आजिज़ न कर सकोगे और मेरी खैर ख्वाही तुम्हारे काम नहीं आ सकती, गो मैं तुम्हारी खैर ख्वाही करना चाहूं, जब की अल्लाह को ही तुम्हारी गुमराही मंज़ूर हो - - - '' सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (19-34) हजरते नूह का ज़िक्र एक बार फिर आता है.
- *कयामत की रट सुनते सुनते थक कर काफ़िर कहते हैं - - - “इसे कौन चीज़ रोके हुए है ? आए न - - -” मुहम्मद कहते हैं '' याद रखो जिस दिन वह अज़ाब उन पर आन पड़ेगा, फिर टाले न टलेगा और जिसके साथ वहमज़ाक कर रहे हैं वह आ घेरेगा.” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (८) चौदहवीं सदी हिजरी भी गुज़र गई, कि कयामत की मुहम्मदी पेशीनगोई थी, डेढ़ हज़ार साल गुज़र गए हैं, क़यामत नहीं आई.