१२वाँ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- पार्टर्ीीा १२वाँ महाधिवेशन सम्पन्न हुए १५ महीना बितने पर भी सभापति कोइराला मंे बोल्ड डिसिजन करने की क्षमता न होने से केन्द्रिय समिति ने भी पर्ूण्ाता नहीं पाई है।
- दूसरा सबसे ऊँचा शानदार पर्वत-के-2 , नवाँ सबसे ऊँचा नंगापर्वत, जिसे पर्वतारोहण समुदाय के द्वारा, इसकी शोहरत के कारण, "द किलर माउंटेन" की उपाधि दी गयी है, ११वाँ सबसे ऊँचा हिडनपीक, १२वाँ सबसे ऊँचा बर्डपीक और १३वाँ सबसे ऊँचा गेशरब्रुम-II, सभी इस क्षेत्र के भाग हैं।
- कुरान शरीफ लिखने के बाद इसके लेख अमानत खाँ शीराज़जी ने अपना नाम तथा तारीख १०४८ हिजरी-सम्राट के शासन काल का १२वाँ वर्ष ( सन् १६३९) अर्थात् टैवर्नियर के भारत आगमन से एक वर्ष से अधिक पूर्व कुरान लेखन पूरा हो गया था तथा मचान हटा दिया गया था।
- *मुहम्मद अपनी शायरी पर नाज़ करते हुए कहते हैं - - - ' ' काफ़िर कुरआन को सुनकर कहते हैं यह तो निरा और साफ़ जादू है.” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (७) मगर शरअ (धर्म विधान) और शरह (व्याख्या) दोनों के लिए अनपढ़ नबी ने मुश्किल खड़ी कर दी है.
- “आप का दिल इस बात से तंग होता है कि वह कहते हैं कि उन पर कोई खज़ाना नाज़िल क्यूं नहीं हुआ या उनके हमराह कोई फ़रिश्ता क्यूं नहीं आया ? आप तोसिर्फ़ डराने वाले हैं.” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (१२) मुहम्मद की मक्र मुसलमानों के दिमाग के दरीचे खोलने के लिए यह क़ुरआनी आयते ही काफी हैं।
- “अगर हम इन्सान को अपनी मेहरबानी का मज़ा चखा कर छीन लेते हैं तो वह न उम्मीद और ना शुक्रा हो जाता है और जब किसी मेहरबानी का मज़ा चखा देते हैं तो इतराने और शेखी बघारने लग जाता है . ” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (९-११) ऐसी बातें कोई खुदाए अज़ीम तर नहीं बल्कि एक कम ज़र्फ़ इंसान ही कर सकता है.
- “अल्लाह छ दिनों में कायनात की तकमील को फिर दोहराता है , इसमें एक नई बात जोड़ता है कि इसके पहले अर्श पानी पर था ताकि तुम्हें आजमाए कि तुम में अच्छा अमल करने वाला कौन है?” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (७) एक साहब एक बड़े इदारे में डाक्टर हैं, फ़रमाने लगे कि कुरआन को समझना हर एक के बस की बात नहीं.
- उन्हों ने फ़रमाया अल्लाह तअल बशर्त अगर उसे मंज़ूर है , तुम्हारे सामने लावेगा और तुम उसको आजिज़ न कर सकोगे और मेरी खैर ख्वाही तुम्हारे काम नहीं आ सकती, गो मैं तुम्हारी खैर ख्वाही करना चाहूं, जब की अल्लाह को ही तुम्हारी गुमराही मंज़ूर हो - - - '' सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (19-34) हजरते नूह का ज़िक्र एक बार फिर आता है.
- *कयामत की रट सुनते सुनते थक कर काफ़िर कहते हैं - - - “इसे कौन चीज़ रोके हुए है ? आए न - - -” मुहम्मद कहते हैं '' याद रखो जिस दिन वह अज़ाब उन पर आन पड़ेगा, फिर टाले न टलेगा और जिसके साथ वहमज़ाक कर रहे हैं वह आ घेरेगा.” सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (८) चौदहवीं सदी हिजरी भी गुज़र गई, कि कयामत की मुहम्मदी पेशीनगोई थी, डेढ़ हज़ार साल गुज़र गए हैं, क़यामत नहीं आई.