अगद का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसके आठ विभाग माने जाते हैं , जो हैं- शल्य , शालक्य ( सिलाई ) , काया चिकित्सा ( बुखार ) , तंत्र विद्या ( झाड़-फूंक ) , कुमार चिकित्सा ( बच्चों की चिकित्सा ) , अगद तंत्र ( विषैले जीवों के काटने का इलाज ) , रसायन विद्या और बीजीकरण।
- इसके आठ विभाग माने जाते हैं , जो हैं- शल्य , शालक्य ( सिलाई ) , काया चिकित्सा ( बुखार ) , तंत्र विद्या ( झाड़-फूंक ) , कुमार चिकित्सा ( बच्चों की चिकित्सा ) , अगद तंत्र ( विषैले जीवों के काटने का इलाज ) , रसायन विद्या और बीजीकरण।
- मूत्र उत्सादन ( उचटना) अलेप्न (लेप करना) आस्थापन ( रुक्षवस्ति लेना), विरेचन (दस्त लेना), स्वेद (अफारा से पशीना लेना) इन उप्योंगों में आते हैं और अफारा, और अगद अर्थात विषहर औषध में और उदर रोंगों और अर्श (बवासीर) गुल्म (फोड़ा), कुष्ठ (कोढ़ आदि त्वचा रोग) किलास (श्वेत कोढ़) आदि रोगों में हितकारी हैं.
- ( १) काय चिकित्सा-सामान्य चिकित्सा (२) कौमार भृत्यम्-बालरोग चिकित्सा (३) भूत विद्या- मनोरोग चिकित्सा (४) शालाक्य तंत्र- उर्ध्वांग अर्थात् नाक, कान, गला आदि की चिकित्सा (५) शल्य तंत्र-शल्य चिकित्सा (६) अगद तंत्र-विष चिकित्सा (७) रसायन-रसायन चिकित्सा (८) बाजीकरण-पुरुषत्व वर्धन औषधियां:- चरक ने कहा, जो जहां रहता है, उसी के आसपास प्रकृति ने रोगों की औषधियां दे रखी हैं।
- मूत्र उत्सादन ( उचटना ) अलेप्न ( लेप करना ) आस्थापन ( रुक्षवस्ति लेना ) , विरेचन ( दस्त लेना ) , स्वेद ( अफारा से पशीना लेना ) इन उप्योंगों में आते हैं और अफारा , और अगद अर्थात विषहर औषध में और उदर रोंगों और अर्श ( बवासीर ) गुल्म ( फोड़ा ) , कुष्ठ ( कोढ़ आदि त्वचा रोग ) किलास ( श्वेत कोढ़ ) आदि रोगों में हितकारी हैं .
- तक्षक ने ब्राह्मण का वेष बनाकर कश्यप से पूछा , “भगवान् आप कहाँ जा रहे हैं ?'' कश्यप ने उत्तर दिया ‘‘मुझे ज्ञात हुआ है कि राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक के दंश से होगी, मैं अपने अगद प्रयोग द्वारा राजा के शरीर को विष रहित कर दूँगा जिससे धन और यश की प्राप्ति होगी।” तक्षक अपनी छदम् वेष त्यागकर वास्तविक रूप में प्रकट हो गया और कहा, ‘‘मैं इस हरे-भरे वृक्ष पर दंश का प्रयोग कर रहा हूँ।
- तक्षक ने ब्राह्मण का वेष बनाकर कश्यप से पूछा , “भगवान् आप कहाँ जा रहे हैं ?'' कश्यप ने उत्तर दिया ‘‘मुझे ज्ञात हुआ है कि राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक के दंश से होगी, मैं अपने अगद प्रयोग द्वारा राजा के शरीर को विष रहित कर दूँगा जिससे धन और यश की प्राप्ति होगी।” तक्षक अपनी छदम् वेष त्यागकर वास्तविक रूप में प्रकट हो गया और कहा, ‘‘मैं इस हरे-भरे वृक्ष पर दंश का प्रयोग कर रहा हूँ।