अनाचरण का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ( ८ ) जिम्मेदारी : मनुष्य यों स्वतंत्र समझा जाता है , पर वह जिम्मेदारियों के इतने बंधनों से बँधा हुआ है कि अपने- परायों में से किसी के भी साथ अनाचरण की गुंजाइश नहीं रह जाती।
- उत्पीड़ित चुपचाप सब कुछ सह लेता है , यह समझकर अत्याचारी की हिम्मत दूनी - चौगुनी हो जाती है और वह अपना मार्ग निष्कंटक समझकर और भी अधिक उत्साह से अनाचरण करने पर उतारू हो जाता है।
- चूंकि इसका इच्छाकृत असफलता के साथ अधिक विरोधाभास है , उदाहरणार्थ प्रभु और उनके कार्यों से प्रेम करो, सुस्ती को कभी-कभी अन्य पापों की तुलना में कम संगीन समझा जाता है, आचरण की तुलना में अनाचरण का पाप अधिक माना जाता है.
- चूंकि इसका इच्छाकृत असफलता के साथ अधिक विरोधाभास है , उदाहरणार्थ प्रभु और उनके कार्यों से प्रेम करो, सुस्ती को कभी-कभी अन्य पापों की तुलना में कम संगीन समझा जाता है, आचरण की तुलना में अनाचरण का पाप अधिक माना जाता है.
- अकेला पुरुष कहां कुछ कर पाता ? -्व्यक्तिगत बलात्कार आदि पुरुष का अत्याचार नहीं-दुष्ट अनैतिक प्रक्रति-स्वभाव-अर्थात मानव मात्र के अनाचरण का मामला है , स्त्री-पुरुष का अन्तर्संबन्ध- झगडा नहीं , मानव मात्र ( स्त्री पुरुशः दोनों ) के चारित्रिक पतन का है ।
- ( - आज अनाचरण व् मर्यादाहीनता के युग में जब पुरुष ( एवं स्त्रियाँ स्वयं भी ) स्वर्ण अर्थात धन , कमाई , भौतिक सुखों के पीछे दौड़ रहे हैं जो स्वयं इस अनाचरण का मूल है ..... स्त्रियों को ही आगे आना होगा ...
- ( - आज अनाचरण व् मर्यादाहीनता के युग में जब पुरुष ( एवं स्त्रियाँ स्वयं भी ) स्वर्ण अर्थात धन , कमाई , भौतिक सुखों के पीछे दौड़ रहे हैं जो स्वयं इस अनाचरण का मूल है ..... स्त्रियों को ही आगे आना होगा ...
- मैं सोचने लगा कि गुप्तजी ने एसा क्यों कहा होगा , शायद समकालीन अशिक्षा , अत्याचार , उत्प्रीणन , प्रतारणा , अनाचरण व अंधविश्वासों का दंश झेलती नारी के परिप्रेक्ष्य में जो बहुत कुछ आज भी है | परन्तु मैं सोचता हूँ कि इसे यदि हम इस प्रकार सोचें कि ...
- मैं सोचने लगा कि गुप्तजी ने एसा क्यों कहा होगा , शायद समकालीन अशिक्षा , अत्याचार , उत्प्रीणन , प्रतारणा , अनाचरण व अंधविश्वासों का दंश झेलती नारी के परिप्रेक्ष्य में जो बहुत कुछ आज भी है | परन्तु मैं सोचता हूँ कि इसे यदि हम इस प्रकार सोचें कि ...
- कुंजिका - १ = अनाचरण , कुसंस्कार आदि जन-जन में फैलाना - वास्तव में विरोधी दल , राष्ट्र व संस्कृति के कूटनीतिक हथियार होते हैं जो वे विरोधी दल व विजित राष्ट्र-क्षेत्र की जनता में फैलाये रखते हैं ताकि वे विरोध के स्तर तक ऊपर न उठ पायें , अनैतिकता के सुख में मस्त रहें ...