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अपरिणामी का अर्थ

अपरिणामी अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. उस समय आत्मा अपने शुद्ध , पवित्र अपरिणामी चैतन्य स्वरूप का अनुभव करता है और समझलेता है - मैं प्रकृति एवं प्राकृत चित्तधर्मों से सर्वथा अछूता हूँ।
  2. बोध के लिए अपरिणामी ब्रह्म में जो परिणामी सुवर्ण आदि का दृष्टान्त दिया जाता है , वहाँ पर उपमाप्रयुक्त प्रयत्नों से सर्वांश में सादृश्य नहीं हो सकता।
  3. उनमें प्रकृति तो जड़ और परिणामशील है अर्थात् निरन्तर परिवर्तन होना उसका धर्म है तथा मुक्तपुरुष और ईश्वर-ये दोनों नित्य , चेतन, स्वप्रकाश, असंग, देशकालातीत, सर्वथा निर्विकार और अपरिणामी हैं।
  4. सदा ज्ञाताश्चित्तवृत्तयस्तत्प्रभोः पुरुषस्यापरिणामित्वात्॥ 4 / 18 ॥ [ 179 ] सर्वदा जानीजाती हैं चित्तवृत्तियाँ ( अन्य तत्त्व के द्वारा ) उसके - चित्त के स्वामी पुरुष के अपरिणामी होने से ।
  5. प्रकृति - ' यह सब कुछ प्रकृति का परिणाम है , वही सब करती रहती है , मैं तो अपरिणामी कूटस्थ चेतन हूँ , मुझे क्या करना ? ' -इस प्रकार के विचार मन लाकर संतुष्ट होकर बैठ जाना प्रकृति नामक तुष्टि है ।
  6. ( ०५-०२-१०) व्यवधान ओम राघव व्यक्ति विशेष की परख करते हम अपने आदर्शों के अनुरूप दूसरे द्वारा माने जाने वाले देवता को देखते परखते या माप करते अपनी धारणा से तय देवता से दूसरे के माने जाने वाले आदर्श से करते परख अपने द्वारा धारण आदर्श से बनता जो अनबन का व्यवधान आपसी सामन्जस्य का प्रवृति और निवृत्ति कर्म का मूल और धर्म का प्रारम्भ मानते हैं शुद्ध अजर अपरिणामी परमात्मा कहां कैसे? पर भेद हमने गढ़ लिया है।
  7. भाव यह कि ' तदेतत् ब्रह्मापूर्वमनपरबाह्यम् ' , ' एकमेवाद्वितीयम् ' इत्यादि श्रुतियों से चित् शक्ति के परिणाम शून्य , प्रतिसंक्रमरहित , शुद्ध और अनन्त होने , ' अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽम् ' इत्यादि स्मृतियों से असंग , उदासीन ब्रह्म में परिणाम हेतु का स्पर्श न होने और चित् का जड़ के आकार में होना संभव नहीं है इत्यादि युक्तियों से ब्रह्म का परिणाम न होने के कारण अपरिणामी ब्रह्म में जो परिणामी सुवर्णादि के तुल्य कारणता की उपमा दी जाती है वहाँ पर उपमाप्रयुक्त प्रयत्नों से भी सर्वांश में साधर्म्य का लाभ होना संभव नहीं है।।
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