अबूझा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कश्मीर एक रहस्य , अबूझा और बिकने वाला मुद्दा दिखता है , इसलिये हिन्दी उपन्यासों में कश्मीर का क्रम टूटता नहीं दिखता ।
- क्या हम उन्हें पढ़ सकते हैं ? कथ्य अनुवाद है , जो अबूझा है , उसे बूझे हुए में अनूदित करता हु आ.
- ना नुकूर करते हुए आखिर पुनीत को पहली लाईन में बैठना पडा और उधर तीसरी लाईन में बैठे निदेशक महोदय और चाटुकार शिक्षकों को कुछ अबूझा सा जान पड़ा।
- न जाने कितने अनाथों की आँखों में मेरी बहन की हल्दी-घुली आँखों की तरह ही एक अबूझा सवाल अटका हुआ था , “ मेरा क्या होगा , और ... ? ”
- या के स्वयं शाश्वत जीवन . फिर एक निज अन्वेषण . निज अनुभव . निज सत् य. हम जितना जानना चाहेंगे , जान लेंगे . फिर भी बहुत कुछ रह जाएगा अबूझा .
- दर्द यूँ ही नही उतरता लफ़्ज़ों मे दर्द भी कसक जाता है तब शब्द बन कर ढलता है मगर दर्द कभी भी ना पूरा बयान होता है इक अधूरा अबूझा आख्यान होता है
- समीरलालजी ने खुशदीप की बात को सही करार दिया और कहा- बहुत सही पकड़ा खुशदी प . .. यही तो वजह है कि तु म. .. : ) अब इस पकड़म-पकड़ाई में हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि तुम और इस्माइली के बीच क्या है ? इसे कौन पकड़ेगा ? क्या यह अबूझा ही रह जायेगा ?
- और योग जैसी गूढ़ चीज के लिए दीर्घकालीन योजना बनाकर किया गया प्रयास , बेहद सामान्य कपड़े, स्वयं को धनाढ्य या अभिजातवर्गीय प्रदर्शित करने की ललक से मुक्त, अनजान व्यक्ति के प्रश्नों के उत्तर देने की तत्परता, आत्म-नियंत्रण, मनोशारीरिक श्रम की हल्की-सी थकान और उसमें खिल पड़ने वाली मुस्कान, प्रकाश व छाया जैसे अबूझा भावों का चेहरे पर आना-जाना...
- ये भी हो सकता है एकदम विपरीत लगती सी परिस्थितियों में भी उस के मन की अडोल निश्छलता को ईर्ष्यालु होने का , रपटीली पगडंडियों को स्वीकारने अथवा नकारने की सहज मानवीय पलों की कसौटियों पर कसता वो सर्वश्रष्ठ स्वर्णकार का अबूझा सा कारनामा हो !!! उस ऊपरवाले को मन की शुचिता का ही ध्यान रहता है , शायद इसीलिये वो नन्ही सी खुली हुई चोंच में अपनी सारी मिठास पूरित करने के अवसर देते हैं और आप्लावित भी कर देते हैं ।
- सतीश जी के दर्द को सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है मगर वो उससे गुजरे हैं और पल पल एक दर्द की लहर से गुजरना ………शायद हम सबके लिये कहना आसान है कि हम समझ सकते हैं मगर जो इससे गुजरता है उस दर्द को सिर्फ़ वो ही समझ सकता है ………दर्द यूँ ही नही उतरता लफ़्ज़ों मेदर्द भी कसक जाता है तब शब्द बन कर ढलता है मगर दर्द कभी भी ना पूरा बयान होता है इक अधूरा अबूझा आख्यान होता हैप्रत्युत्तर देंहटाएं