अमावसी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हम्म गर वो चाँद जैसे होंगे तो जरूर आएँगे तारों के साथ वर्ना तो ऍसी परियों के साथ अक्सर उनके अमावसी मित्र ही होते हैं जो आशिकों को अपनी शाम , ग़म और तनहाई में बिताने पे मज़बूर कर देते हैं !
- क्या जोड़ तुम्हारा मेरा है , हम नहीं एक हो सकते हैं , यदि साथ चलें तो हम दोनों , हथिनी चूहा से लगते हैं , तुम पूर्ण पूर्णिमा सी गोरी , मैं अमावसी अँधियारा सा , हर एक गणित से जोड़-घटा , हम हास्यास्पद से लगते हैं / हम हास्यास्पद से लगते हैं /
- तुम्हारे संग मनाई हर वो दिवाली कुछ याद सी आ रही है उस रात के अमावसी अधेरें से दूर , सिर्फ मैं और तुम दीपों के बने गोल धारे में बैठे इंतज़ार करते रहे कि काश ये अमावस, प्रकाशवर्ष से भी लम्बी हो जाये हाँ सच, उस रात अहसास हुआ था मुझे, सीता मैय्या कि अतह: प
- तुम्हारे संग मनाई हर वो दिवाली कुछ याद सी आ रही है उस रात के अमावसी अधेरें से दूर , सिर्फ मैं और तुम दीपों के बने गोल धारे में बैठे इंतज़ार करते रहे कि काश ये अमावस, प्रकाशवर्ष से भी लम्बी हो जाये हाँ सच, उस रात अहसास हुआ था मुझे, सीता मैय्या कि अतह: प...
- चलो तो दूरियाँ क्षितिज की इक कदम में बंद हों बढ़ो तो हाथ थामने को मंजिलों में द्वन्द हों हैं प्राप्ति के पलों की उंगलियाँ तुम्हारे हाथ में अमावसी निशा भले , जले हैं दीप साथ में लगा रहीं हैं अल्पनायें स्वस्ति कल के भाल पर लिखा है हल उठे हुए नजर के हर सवाल पर
- रात्रि के अमावसी अँधियारे में जगमगाती दीपशिखा को देखकर कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है , मानो स्वयं भगवान शिवशंकर दीपक की जलाधारी में ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट होकर मानव को कल्याण का आशीष प्रदान कर रहे हैं, जैसे भगवान शंकर ने संसार के कल्याण के लिए हलाहल विष का पान किया था, उसी प्रकार यह नन्हा सा दीपक स्वयं जलकर अँधेरे की कालिमा का पान कर मानव का कल्याण करता है।
- अमावसी रहे निशा जलेंगे दीप द्वार पर किरण किरण की ज्योत्सना कहेगी ये पुकार कर बने भलें ही व्यूह नित , है पार्थ पुत्र ध्येय रत तो निश्चयों के सामने हुआ है काल चक्र नत अडिग , अथक अलभ्य की सकाम कामना लिये किये हैं प्रज्ज्वलित यहां भविष् यतों के नव दिये तो आज का सिंगार हो तो हो रहे तो हो रहे विलुप्त अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
- माहेताब , मेरी तन्हा रातो में अब निकलते नहीं या आकर छुप जाते हो स्याह परदे के पीछे कहीं अरसा हुआ तुम्हे देखे - तुम्हारी वो सफ़ेद दमक और वो तुम्हारी नूरी आँखों में तैरती हुई चमक तुम तो रोज़ साँझ ढले याद बनकर आ जाते थे दर्द मिटाने तो कभी आंसू ही बहाने आ जाते थे वो चांदनी जो तुमसे ली थी उधार पूनम की शब नहीं जगमगाती वो मेरी अमावसी रातो को अब अबके अपनी सारी कीमती अमानते ले जाना
- हे लेखक ! उल्लसित अयोध््या में अमावसी लंका की चर्चा उचित नहीं है अतः तूं उपमा का त्याग कर एवं सीध्े-सीध्े अयोध््या के उन दोनो उल्लसित सेवकों द्वारा की गई वार्ता का सीध्ी भाषा में वर्णन कर।द्ध ‘ जय श्रीराम , मित्रा हितचिंतक ! ' ‘ जय श्रीराम , मित्रा निष्कंटक ! ' ‘ बहुत दिनों बाद तुमने दर्शन दिए , मित्रा ! ' ‘ तुमने भी उतने ही दिनों बात दर्शन दिए , मित्रा ! ' ‘ बहुत दिनों बाद हम लोग सक्रिय जो हुए हैं।