अविनाभाव का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अतएव सहचारियों और व्याप्य-व्यापक में सहभाव नियम अविनाभाव होता है , जिससे रूप से रस का और शिंशपात्व से वृक्षत्व का अनुमान किया जाता है।
- क्योंकि कला का मर्म ही यह हैकि रूप-विन्यास और कथ्य में , शब्द और अर्थ में एक अविनाभाव सम्बन्ध हो-- एकको दूसरे से अलग नहीं किया जा सके.
- विमलजी ने प्रसन्नता जताई- ‘ हाँ चितले जी . प्रत्यभिज्ञादर्शन का प्रमाण प्रमेयात्मक हो सकता है , किन्तु त्रिवृत्करणवाद का वैशिष्ट्य और विकीर्णन का तुरीयातीत स्वरूप , अविनाभाव का सम्बन्ध नहीं बतलाता .
- विमलजी ने प्रसन्नता जताई- ‘ हाँ चितले जी . प्रत्यभिज्ञादर्शन का प्रमाण प्रमेयात्मक हो सकता है , किन्तु त्रिवृत्करणवाद का वैशिष्ट्य और विकीर्णन का तुरीयातीत स्वरूप , अविनाभाव का सम्बन्ध नहीं बतलाता .
- इन दोनों प्रकार के अविनाभाव से विशिष्ट हेतु के भेदों का कथन जैन न्यायशास्त्र में विस्तार से किया गया है , जिसे हमने ' जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार ' ग्रन्थ में विशदतया दिया है।
- वस्तुतः ये दोनों तरह के इतिहास एक दूसरे से कुछ इस तरह अविनाभाव जुड़े हुए हैं कि यह न मानने का कोई कारण नहीं है कि दोनों का स्रोत एक ही है , कि दोनो एक दूसरे का सहउत्पाद (
- * महर्षि मनु एवं [ [ याज्ञवल्क्य ]] आदि के वचनों में जैसे जन सामान्य में अगाध श्रद्धा दृष्टि गोचर होती है वैसी श्रद्धा या विश्वास धूएँ में आग की व्याप्ति या अविनाभाव है इस वचन में नहीं देखी जाती है।
- -सर्वदर्शन संग्रह , पृ 0 13 / ref > * इतने उपयों का सहारा ले कर भी यदि व्याप्ति का बोध सम्भव नहीं होता है तो अविनाभाव या व्याप्ति के ज्ञान के बिना धूम आदि को देख कर वह्नि आदि का स्वार्थानुमान भी नहीं हो सकता।
- अन्तत : यही निष्कर्ष निकलता है कि अविनाभाव या व्याप्ति का ज्ञान ऊपर चर्चित रीति से कथमपि सम्भव नहीं हैं इस प्रकार व्याप्ति के दुर्बोध हो जाने से अनुमान का प्रत्यक्ष से अलग प्रमाण मानने की कल्पना दिवास्वप्न की भाँति कोरी कपोल कल्पना मात्र बनकर रह जाती है।
- ' [[ मध्वाचार्य ]] द्वारा लिखित सर्वदर्शन की इस पंक्ति की हिन्दी व्याख्या करते हुए उमाशंकर शर्मा ' ऋषि ' लिखते हैं- ' यदि कहें कि धूम और अग्नि ( धूमघ्वज ) में अविनाभाव सम्बन्ध पहले से ही है तो इस बात पर वैसे ही विश्वास नहीं होगा जैसे मनु आदि ऋषियों की बातों पर विश्वास नहीं होता है।