अशुचि का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ५ ) के अनुसार अनित्य, अशुचि, दु:ख तथा अनांत्म विषय पर क्रमश: नित्य, शुचि सुख और आत्मस्वरूपता की ख्याति ‘अविद्या' है।
- जैन धर्म में भी बारह भावनाओं का महत्व है-अनित्य , अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक और धर्म भावना।
- जैन धर्म में भी बारह भावनाओं का महत्व है-अनित्य , अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक और धर्म भावना ।
- पातंजल योगदर्शन ( २.५) के अनुसार अनित्य, अशुचि, दु:ख तथा अनांत्म विषय पर क्रमश: नित्य, शुचि सुख और आत्मस्वरूपता की ख्याति ‘अविद्या' है।
- ] 1 . छूने का भाव ; स्पर्श ; संसर्ग 2 . गंदी , अशुचि या रोगसंचारक वस्तु का स्पर्श ; अस्पृश्य का संसर्ग 3 .
- ] 1 . छूने का भाव ; स्पर्श ; संसर्ग 2 . गंदी , अशुचि या रोगसंचारक वस्तु का स्पर्श ; अस्पृश्य का संसर्ग 3 .
- जैन विद्वान स्थान , बीज, उपहम्भ, निस्यंद, निधन और आधेय शौचत्व के कारण शरीर को अशुचि मानते हैं किंतु वे यह स्वीकार नहीं करते कि वह अविद्याग्रस्त है।
- जैन विद्वान स्थान , बीज, उपहम्भ, निस्यंद, निधन और आधेय शौचत्व के कारण शरीर को अशुचि मानते हैं किंतु वे यह स्वीकार नहीं करते कि वह अविद्याग्रस्त है।
- ब्राह्मण जन्म और मरण में दस दिन तक अशुचि रहता हैं , क्षत्रिय बारह दिन तक , वैश्य पन्द्रह दिन तक और शूद्र एक मास तक अशुचि रहता हैं।
- ब्राह्मण जन्म और मरण में दस दिन तक अशुचि रहता हैं , क्षत्रिय बारह दिन तक , वैश्य पन्द्रह दिन तक और शूद्र एक मास तक अशुचि रहता हैं।