इन्तिखाब का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा वो शख्स इसके बाद भी अपना बना रहा अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा अब उसके इन्तिखाब का होता कहाँ यकी दिल में था , जिसके ख्वाब का चेहरा बना रहा शामिल रही सफर में भी अपनी उदासिया चाहत
- अब बनारस की सड़क और ट्रैफिक जामों के बारे में क्या कहूँ ? कभी मीर ने दिल्ली के बारे में कहा था , ' दिल्ली जो एक शहर था आलम में इन्तिखाब ... ' . वैसे ही कहूँ तो ' बनारस जो एक शहर है ट्रैफिक से लबालब मिलती है जहाँ सड़क गड्ढों में कहीं - कहीं ... '
- इमाम आज़म ( अबु हनीफ़ा ) रह 0 ने अपने इस कौल से इशारा किया हैं कि जो नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम से पहुंचे वो सर आंखो कुबूल हैं , जो सहाबा रज़ि 0 से पहुंचे इस मे इन्तिखाब करेंगें और जो सहाबा क सिवा ताबईन रह 0 वगैराह से पहुंचे तो वो आदमी हैं और हम भी आदमी हैं |
- चुनांच जब उस ने इस इन्तिखाब को ग़लत क़रार देते हुए बैअत से इन्कार किया , तो अमीरुल मोमिनीन ( अ 0 स 0 ) ने उसूले इन्तिखाब को उस के सामने पेश करते हुए उस पर हुज्जत तमाम की , और यह वही तर्ज़े कलाम है जो ( हरीफ़ के सामने उस के ग़लत मुसल्लमात को पेश कर के उस पर हुज्जत क़ायम करना ) से तअबीर किया जाता है।
- चुनांच जब उस ने इस इन्तिखाब को ग़लत क़रार देते हुए बैअत से इन्कार किया , तो अमीरुल मोमिनीन ( अ 0 स 0 ) ने उसूले इन्तिखाब को उस के सामने पेश करते हुए उस पर हुज्जत तमाम की , और यह वही तर्ज़े कलाम है जो ( हरीफ़ के सामने उस के ग़लत मुसल्लमात को पेश कर के उस पर हुज्जत क़ायम करना ) से तअबीर किया जाता है।
- सनम दहिया आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा वो शख्स इसके बाद भी अपना बना रहा अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा अब उसके इन्तिखाब का होता कहाँ यकी दिल में था , जिसके ख्वाब का चेहरा बना रहा शामिल रही सफर में भी अपनी उदासिया चाहत के नंगे पाव का सहारा बना रहा खुरेजियो के दौर से गुजरा किए मगर फ़िर भी चमन में अमन का दवा बना रहा
- मगर कुछ इक्तिदार परस्त ( सत्ता के पुजारी ) अफ़राद ( ब्यक्तियों ) ने इस वाज़ेह इर्शादात ( स्पष्ट कथनों ) को इस तरह नज़र अन्दाज़ कर दिया है कि गोया उन के कान उन से कभी आशना ही न हुए थे , और इन्तिखाब ( चुनाव ) को इस दर्जा ज़रुरी समझा कि तजहीज़ो तकफ़ीने पैगम्बर ( स 0 ) को छोड़ छाड कर सक़ीफ़ए बनी साइदा में जमा हो गए , और जमहूरियत ( लोक तंत्र ) के नाम पर हज़रत अबू बकर को ख़लीफ़ा मुन्तखब ( चयनित ) कर लिया।