ईक्षण का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इस प्रकार ईक्षण से लेकर परमात्मा के प्रवेशपर्यन्त जो सृष्टिक्रम बतलाया गया है , इसे ही विद्यारण्यस्वामी ने ईश्वर सृष्टि कहा है।
- इसके वाद स्वरुप भूत स्वभाव और काल की प्रेरणा होने पर पुरुष के ईक्षण ( सृष्टि-विषयक संकल्प से क्षोभ को प्राप्त हुए .
- नियंता परमात्मा की प्रेरणा ( ईक्षण ) से क्षोभ ( धुड़धुड़ी ) उत्पन्न होता है , जिससे वे तत्त्व सर्गोनुमुख हो जाते हैं .
- ईक्षण - तप व ईषत - इच्छा - एकोअहम बहुस्याम - ( अब में एक से बहुत हो जाऊं -जो प्रथम सृष्टि हित काम संकल्प, मनो रेत:
- ऋत्विज् से अभिप्राय यह है कि ऋतु अर्थात् जब सृष्टि रचने का समय आता है तो वह प्रभु अपनी ईक्षण क्रिया से सृष्टि की उत्पत्ति करता है।
- -परिब्राजक === जो ब्रज-ब्रज अर्थत गांव गांव भ्रमण करता हो . ... -गव , गाय , गौ का अर्थ बुद्धि भी होता है , ईक्षण = इच्छा = एषणा ...
- -परिब्राजक === जो ब्रज-ब्रज अर्थत गांव गांव भ्रमण करता हो . ... -गव , गाय , गौ का अर्थ बुद्धि भी होता है , ईक्षण = इच्छा = एषणा ...
- यदि यह कहो कि ईक्षण का प्रयोग गौण वृति से प्रकृति के लिए हुआ है तो यह ठीक नहीं है , क्योंकि वहाँ ‘ आत्मा ' शब्द का प्रयोग है।
- इसी को उपनिषदों में ईक्षण या संकल्प कहा है , जैसा कि छांदोग्य में ' तदैक्षत बहुस्यां प्रजायेय ' ( 6 । 2 । 3 ) । ' प्रजायेय ' शब्द का अर्थ हैं कि प्रजा या वंश पैदा करें।
- प्रथम अध्यायमें यह बतालाया गया है कि सृष्टि के आरम्भ में केवल एक आत्मा ही था , उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसने लोक-रचना के लिये ईक्षण (विचार) किया और केवल सकल्प से अम्भ, मरीचि और मर तीन लोकोंकी रचना की।