उदण्डता का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दुर्भाग्य है कि प्रशासन तथा िशक्षा इसमें सह िशक्षा एवं समान अधिकारों को आग लगाकर उदण्डता , अनुशासनहीन, आचरणविहीन युवा पीढ़ी की फसल तैयार करने में प्राण-प्रज्ञा से िशक्षा के उच्च व्यवसायीकरण में जुटे है।
- दुर्भाग्य है कि प्रशासन तथासिक्षा इसमें सह सिक्षा एवं समान अधिकारों को आग लगाकर उदण्डता , अनुशासनहीन , आचरणविहीन युवा पीढ़ी की फसल तैयार करने में प्राण-प्रज्ञा से सिक्षा के उच्च व्यवसायीकरण में जुटे है।
- पाक के नापाक चेहरे की तस्वीर बार बार उभर कर आती है और हम उसे फिर भी दुलारते रहे , पुचकारते रहें उसके साथ प्रेम की भाषा बोलते रहें और वो उदण्डता करता जा रहा है ।
- पू . डॉक्टरजी के विचार में हिन्दू-मुस्लिम एकता प्रस्थापित करने के महात्माजी के इस प्रयास से मुस्लिमों की उदण्डता अधिक बढ़ेगी, अंग्रेजों से प्राप्त प्रोत्साहन उन्हें दंगे कराने के लिए प्ररित करेगा- इससे उनकी स्वार्थ पूर्ण राजनीति भूख बढ़ी ही जाएगी तथा दूसरी ओर असंगठित हिन्दू समाज का मनोबल घटेगा।
- श्री किशनारामजी महाराज ने दुन्दाङा आगमन पर सुजारामजी की चंचलता व उदण्डता की पहचान कर दादाजी श्री शेरारामजी काग से शिकारपुरा आश्रम मेँ सेवार्थ भेजने का आग्रह किया इस आग्रह को काग परिवार ने गुरू आज्ञा मानते हुए दस वर्ष की अल्पायु मेँ महन्त श्री देवारामजी महाराज को सेवार्थ हेतु सुपुर्द किया।
- हास्य-व्यंग्य एक स्वस्थ तथा स्थाई उज्ज्वलता की पृष्ट -भूमि में किया गया है जिसमें न तो किसी प्रकार की दुरूहता या रिक्तता का अंशमात्र है , और न ही मज़ाक़ की शुष्कता और उदण्डता का आभास है - क्योंकि जैसे कि महात्मा मीर दाद कहते हैं - “मज़ाक़ ने मज़ाक़ उड़ाने वालों का सदा मज़ाक़ उड़ाया है.”
- व्यक्ति के संस्कार उसकी भाषा शैली पता चल जाते है , संस्कार वान व्यक्तियों की भाषा शैली अलग ही होती है वे भरी भीड़ मे अलग ही अपनी पहचान छोडते है , और संस्कार हीन व्यक्तियों की भाषा शैली उदण्डता और अहंकार से परिपूर्ण होती है और हर तरफ वो अपनी उदण्डता का प्रमाण छोड जाते है ।
- व्यक्ति के संस्कार उसकी भाषा शैली पता चल जाते है , संस्कार वान व्यक्तियों की भाषा शैली अलग ही होती है वे भरी भीड़ मे अलग ही अपनी पहचान छोडते है , और संस्कार हीन व्यक्तियों की भाषा शैली उदण्डता और अहंकार से परिपूर्ण होती है और हर तरफ वो अपनी उदण्डता का प्रमाण छोड जाते है ।
- हास्य-व्यंग्य एक स्वस्थ तथा स्थाई उज्ज्वलता की पृष्ट -भूमि में किया गया है जिसमें न तो किसी प्रकार की दुरूहता या रिक्तता का अंशमात्र है , और न ही मज़ाक़ की शुष्कता और उदण्डता का आभास है - क्योंकि जैसे कि महात्मा मीर दाद कहते हैं - “ मज़ाक़ ने मज़ाक़ उड़ाने वालों का सदा मज़ाक़ उड़ाया है . ”