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उमड़ता-घुमड़ता का अर्थ

उमड़ता-घुमड़ता अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. यह जाने बिना कि तू पंछी है किसी और डाल की तेरा दाना-पानी नहीं हमारे अंगान का , तू बादल है उमड़ता-घुमड़ता , जो बरसेगा किसी और की बगिया में।
  2. कवि भी तो वही कहते हैं , जो आमजन के मन में उमड़ता-घुमड़ता रहता है , लेकिन भावनाओं को शब्दों का अम्बर पहनाना तो हर किसी के वश में नहीं हो न।
  3. शिल्पकार के मुख से ये तुम हो . ..? अब काव्य उमड़ता-घुमड़ता नहीं - ललित शर्मा एक अरसे से शिल्पकार ने कुछ काव्य रचा नहीं, पहले रोज एक पोस्ट आ ही जाती थी नित नेम से।
  4. कैसे कल्पना की दुनिया में हम गोते लगाने लगते हैं , भावनाओं का ज्वार कैसे हमारे दिल में उमड़ता-घुमड़ता है, कैसे एक बार दिल में कोई बस जाए तो उसकी एक मुस्कुराहट, एक हंसी पर हम जान छिड़कते हैं।
  5. जिस तरह बाबा नागार्जुन अपनी वेशभूषा , रहन-सहन, खान-पान और बोली-बानी में भदेस और सहज थे, उसी तरह उनका समूचा लेखन प्रथम दृष्टया तो सरल-सहज-सम्प्रेषणीय नज़र आता है किन्तु उनकी अलंकारहीन भाषा का जादू देर तक पाठक-श्रोता के मन-मस्तिष्कमें उमड़ता-घुमड़ता रहता है।
  6. जिस तरह बाबा नागार्जुन अपनी वेशभूषा , रहन-सहन, खान-पान और बोली-बानी में भदेस और सहज थे उसी तरह उनका समूचा लेखन प्रथम दृष्टया तो सरल-सहज-सम्प्रेषणीय नज़र आता है किन्तु उनकी अलंकारहीन भाषा का जादू देर तक पाठक-श्रोता के मन-मष्तिस्क में उमड़ता-घुमड़ता रहता है।
  7. यह अलग बात है कि उनके भीतर उमड़ता-घुमड़ता तूफान बढ़ता जा रहा था और फिर , जैसा कि कभी-कभी किस्मत से ही ऐसा होता है , एक गेंदबाज-कार्टराईट , घायल हो गया और बेसिल को दौरे के लिए टीम में ले लिया गया .
  8. जिस तरह बाबा नागार्जुन अपनी वेशभूषा , रहन-सहन , खान-पान और बोली-बानी में भदेस और सहज थे , उसी तरह उनका समूचा लेखन प्रथम दृष्टया तो सरल-सहज-सम्प्रेषणीय नज़र आता है किन्तु उनकी अलंकारहीन भाषा का जादू देर तक पाठक-श्रोता के मन-मस्तिष् कमें उमड़ता-घुमड़ता रहता है।
  9. और हां , अक्सर जब कभी अपने अंदर कुछ उमड़ता-घुमड़ता हुआ सा लगता है , लगता है कि अंदर दिलो-दिमाग में कुछ है जिसे बाहर आना चाहिए , तब पेन अपने-आप कागज़ पर चलने लगता है और यही बात मुझे एहसास दिलाती है कि मैं कभी-कभी कुछ लिख लेता हूं …
  10. बचपन का प्यार क्या होता है , कैसे नजरों से नजरें मिलती हैं और दिल धड़क उठता है, कैसे कल्पना की दुनिया में हम गोते लगाने लगते हैं, भावनाओं का ज्वार कैसे हमारे दिल में उमड़ता-घुमड़ता है, कैसे एक बार दिल में कोई बस जाए तो उसकी एक मुस्कुराहहट, एक हंसी पर हम दिलोजान छिड़कते हैं।
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