कर्म कारक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- प्रवीण पाण्डेयप्रवीण जी , मैं संस्कृत अच्छी प्रकार से नहीं जानता किन्तु मुझे लगता है कि “इति सुभाषितम् शतकम्” के स्थान पर “इति सुभाषिताणां शतकम्” होना चाहिए क्योंकि “सुभषातिम्” एकवचन तथा कर्म कारक है और “सुभाषिताणां” बहुवचन सम्बन्ध कारक।
- प्रवीण पाण्डेय प्रवीण जी , मैं संस्कृत अच्छी प्रकार से नहीं जानता किन्तु मुझे लगता है कि “इति सुभाषितम् शतकम्” के स्थान पर “इति सुभाषिताणां शतकम्” होना चाहिए क्योंकि “सुभषातिम्” एकवचन तथा कर्म कारक है और “सुभाषिताणां” बहुवचन सम्बन्ध कारक।
- आज देखो हम फ़िर खड़े , जहाँ दिवंगत स्मिरितियों का स्मारक, और आज फिर यह खेल चले, तू कर्ता तो मैं कर्म कारक, सृजन कर्ता पिरोता था जब तेरे मेरे ही अनु, मनन तेरा, मनन मेरा, संबंधो का बस यह धारक, अलग सी कोख से तू भी हँसा, मैं भी दिखा, और आज जल रहे अलग अलग चिता पर, तू भी विचारक, मैं भी विचारक॥ - आभास
- निजवाचक सर्वनाम , संयुक्त रूप (compounds) हैं जो संबंधकारक निर्धारक सर्वनाम और उसके बाद -self से बनते हैं, जिसका अपवाद है अन्य पुरुष एकवचन पुलिंग रूप जो कर्म कारक him + -self से बनता है और अन्य पुरुष बहुवचन रूप जो कर्म कारक them + -self + -(e)s से बनता है.बहुवचन में, इन निजवाचक में नियमित बहुवचन प्रत्यय -s लगता है (f > v के स्वर के साथ जैसा कि self > selves के स्वतन्त्र रूप के साथ) बहुवचन विभक्ति सर्वनाम रूप के साथ.
- निजवाचक सर्वनाम , संयुक्त रूप (compounds) हैं जो संबंधकारक निर्धारक सर्वनाम और उसके बाद -self से बनते हैं, जिसका अपवाद है अन्य पुरुष एकवचन पुलिंग रूप जो कर्म कारक him + -self से बनता है और अन्य पुरुष बहुवचन रूप जो कर्म कारक them + -self + -(e)s से बनता है.बहुवचन में, इन निजवाचक में नियमित बहुवचन प्रत्यय -s लगता है (f > v के स्वर के साथ जैसा कि self > selves के स्वतन्त्र रूप के साथ) बहुवचन विभक्ति सर्वनाम रूप के साथ.
- कुमाऊँ की बोलियों में आज भी अनेक ऐसे शब्द प्रचलित हैं , जो प्रागैतिहासिक किरातों की बोली के अवशेष प्रतीत होते हैं, जैसे- ठुड़ (पत्थर), लिडुण (लिंगाकार कुंडलीमुखी जलीय पौधा), जुंग (मूंद्द), झुगर (अनाज का एक प्रकार), फांग (शाखा), ठांगर (बेलयुक्त पौधों को सहारा देने के लिए लगाई जाने वाली वृक्ष की सूखी शाखा), गांग (नदी), ल्यत (बहुत गीली मिट्टी) आदि शब्दावली के अतिरिक्त कतिपय-व्याकरण तत्व भी आग्नेय परिवार की भाषाओं से समानता रखते हैं, जैसे कुमाऊँनी कर्म कारक सूचक कणि/कन प्रत्यय मुंडा की भोवेसी तथा कोर्क बालियों में के/किन या खे/खिन है।
- कुमाऊँ की बोलियों में आज भी अनेक ऐसे शब्द प्रचलित हैं , जो प्रागैतिहासिक किरातों की बोली के अवशेष प्रतीत होते हैं, जैसे- ठुड़ (पत्थर), लिडुण (लिंगाकार कुंडलीमुखी जलीय पौधा), जुंग (मूंद्द), झुगर (अनाज का एक प्रकार), फांग (शाखा), ठांगर (बेलयुक्त पौधों को सहारा देने के लिए लगाई जाने वाली वृक्ष की सूखी शाखा), गांग (नदी), ल्यत (बहुत गीली मिट्टी) आदि शब्दावली के अतिरिक्त कतिपय-व्याकरण तत्व भी आग्नेय परिवार की भाषाओं से समानता रखते हैं, जैसे कुमाऊँनी कर्म कारक सूचक कणि/कन प्रत्यय मुंडा की भोवेसी तथा कोर्क बालियों में के/किन या खे/खिन है।