कुंतक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- संस्कृत के ही एक दूसरे बड़े आचार्य कुंतक ने इस प्रश्न का बहुत सुन्दर समाधान प्रस्तुत किया है .
- परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि कुंतक ने अपने सिद्धांत में विषय वस्तु का निषेध किया है।
- भारतीय काव्यशास्त्र में कुंतक ने वक्रोक्ति सिद्वांत की स्थापना से पूर्व स्पष्ट किया कि कवि का कर्म काव्य है।
- दण्डी , रूद्रट, वामन, कुंतक, विश्वनाथ, आनंदवर्धन, मम्मट, पं जगन्नाथ आदि संस्कृत आचार्यों के मतों की भी व्याख्या की गई.
- आचार्य कुंतक ने कवि-कर्म कुशलता की जो बात की है , वह इन दोनों प्रक्रियाओं के साथ सम्पृक्त हैं।
- लेकिन कुंतक , महिमभट्ट, क्षेमेन्द्र आदि आचार्यों के अनुसार कारिका भाग और वृत्ति भाग दोनों के प्रणेता आचार्य आनन्दवर्धन ही हैं।
- लेकिन कुंतक , महिमभट्ट, क्षेमेन्द्र आदि आचार्यों के अनुसार कारिका भाग और वृत्ति भाग दोनों के प्रणेता आचार्य आनन्दवर्धन ही हैं।
- वक्रोक्ति सिद्धांत की प्रतिष्ठा तथा प्रतिपादन का श्रेय कुंतक को अवश्य जाता है , पर इसकी परंपरा काफी प्राचीन है।
- कुंतक का सर्वाधिक आग्रह कविकौशल या कविव्यापार पर है अर्थात् इनकी दृष्टि में काव्य कवि के प्रतिभाव्यापार का सद्य : प्रसूत फल हैं।
- परंतु कुंतक ने रस को वक्रोक्ति का प्राण रस मानकर कल्पना के साथ भावना के महत्व को भी स्वीकार किया है।