गवय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इनके मत में गवयत्व विशिष्ट गवय पशु में गवय शब्द के वाच्यत्व के बोधक उपमान का फल उपमिति को नहीं माना जा सकता है।
- आचार्य उदयन ने गवय में गाय के सादृश्य के प्रत्यक्ष को ही उपमिति का करण कहकर वाक्यार्थ के स्मरण को उसका व्यापार कहा है।
- वह गाय इस गवय के सदृश है- इस तरह से पूर्वदृष्ट गाय का स्मरण होता है , वह उपमान प्रमाण का फल नहीं हो सकता है।
- गवय या नीलगाय के प्रत्यक्ष होने पर उसमें गाय का सादृश्य प्रत्यक्ष होता है और गाय में नीलगाय के सादृश्य का , उपमान से ज्ञान होता है।
- जैसे- ' यह वही देवदत्त हे , अथवा यह ( गवय ) गौ के समान है , यह ( महिष ) गौ से भिन्न है , आदि।
- वे कहते हैं कि ' इस जंतु का नाम गवय हैं', 'क्योंकि यह गो के सदृश है' जो जो जंतु गो के सदृश होते है उनका नाम गवय होता है।
- वे कहते हैं कि ' इस जंतु का नाम गवय हैं', 'क्योंकि यह गो के सदृश है' जो जो जंतु गो के सदृश होते है उनका नाम गवय होता है।
- वानर सेना में अंगद , सुग्रीव , परपंजद पनस, सुषेण (तारा के पिता), कुमुद, गवाक्ष, केसरी, शतबली, द्विविद, मैंद, हनुमान , नील , नल , शरभ, गवय आदि थे।
- मीमांसा के अनु-~ सार उपमान प्रमाण कास्वरूप इस प्रकार हैः उपमान में समृति `गो ' का दृश्यमान` गवय' से सादृश्यका ज्ञान होता है-- गवयसदृशी गौः (गाय नीलगाय के समान होती है).
- जैसे- गाय को जानने वाला मनुष्य जब गवय को देखता है , तब गवय के प्रत्यक्ष ज्ञान से सादृश्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप में अविद्यमान गाय का ज्ञान भी उसे हो जाता है।