गोरखपंथी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- सूफी मुसलमान फकीरों के सिवा कई सम्प्रदायों ( जैसे , गोरखपंथी , रसायनी , वेदांती ) के हिंदू साधुओं से भी उनका बहुत सत्संग रहा , जिनसे उन्होंने बहुत सी बातों की जानकारी प्राप्त की।
- सूफी मुसलमान फकीरों के सिवा कई सम्प्रदायों ( जैसे , गोरखपंथी , रसायनी , वेदांती ) के हिंदू साधुओं से भी उनका बहुत सत्संग रहा , जिनसे उन्होंने बहुत सी बातों की जानकारी प्राप्त की।
- कबीर को पागल कहने वालों में हिन्दू भी थे मुसलमान भी , वैष्णव भी , गोरखपंथी भी तथा ब्रह्मवादी भी यानी समय को मुट्ठियों में बंद कर अपनी-अपनी दुकान चलाने वाले सभी धर्मों-सम्प्रदायों के लोग थे।
- कबीर को पागल कहने वालों में हिन्दू भी थे मुसलमान भी , वैष्णव भी , गोरखपंथी भी तथा ब्रह्मवादी भी यानी समय को मुट्ठियों में बंद कर अपनी-अपनी दुकान चलाने वाले सभी धर्मों-सम्प्रदायों के लोग थे।
- पंथी ( सं . ) [ सं-पु . ] 1 . राही ; पथिक ; यात्री ; बटोही 2 . धार्मिक पक्षधर ; मतानुगामी 3 . किसी संप्रदाय या पंथ का अनुयायी , जैसे- गोरखपंथी 4 . किसी विशेष मत को मानने वाला व्यक्ति।
- बाकी कवि बिहारी , अष्टछाप व गोरखपंथी लीक पर रचनाएं उगलते रहे जबकि क्रांतिचेता कवि ने रिवियेरा, पॉल वेलरी व मोंतेन की बातें ही नहीं कीं, उनके हिज्जे तक सही-सही लिखकर अंतर्राष्ट्रीयता की पहचान की एक नयी लीक स्थापित की.भयानक शोक का विषय है कि ऐसा उदीयमान युवा कवि इतनी अल्पायु में चल बसा.
- हमने उदाहरण देकर उनसे पूछा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के इतिहास में नवीं सदी में गोरखपंथी नाथों की ‘ साधुक्कड़ी ' से लेकर वीरगाथाकाल की प्राकृत भक्तिकाल व रीतिकाल की ब्रज व अवधी तक को हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में समेट लाते हैं फिर आप ही बोलियों को भाषा मानने में क्यों हिचकते हैं ?
- चार्वाक के अलावा किसी ने भी , सांख्य से लेकर बौद्ध , जैन , योग , न्याय , वैशेषिक , मीमांसा , वेदान्त तथा परवर्ती रामानुजी , रामानन्दी , सिख , उदासी , गोरखपंथी , नाथ , सिद्ध , राधास्वामी , आर्य समाज , आ॓शो तक जितने भी असंख्य विचार सम्प्रदाय हमारे देश में हुए हैं , किसी ने भी वेदों की निंदा नहीं की।
- चार्वाक के अलावा किसी ने भी , सांख्य से लेकर बौद्ध , जैन , योग , न्याय , वैशेषिक , मीमांसा , वेदान्त तथा परवर्ती रामानुजी , रामानन्दी , सिख , उदासी , गोरखपंथी , नाथ , सिद्ध , राधास्वामी , आर्य समाज , आ॓शो तक जितने भी असंख्य विचार सम्प्रदाय हमारे देश में हुए हैं , किसी ने भी वेदों की निंदा नहीं की।