चुनौटी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- भरोदिया जी , नमस्कार , बहुत दिन बाद आपका कमेंट देख कर अच्छा लगा , सूखे हुए तम्बाकू के पत्ते को बिहार में खैनी कहा जाता है और इसे जिस डब्बे में रखते है उसे चुनौटी कहते है .
- सुभानअल्लाह , क्या हुलिया थी - गाढे की ढीली मिर्जई , घुटनों तक चढ़ी हुई धोती , सर पर एक भारी-सा उलझा हुआ साफा , कन्धे पर चुनौटी और तम्बाकू का वजनी बटुआ , मगर चेहरे से गम्भीरता और दृढ़ता स्पष्ट थी।
- किसी ने क्या खूब कहा है-आदत जो लगी बहुत दिन से वह दूर भला कब होती हैहै धरी चुनौटी पाकिट में पतलून के नीचे धोती हैमेरी नजर में अपनी इसी आदत को बनाए रखने के लिए ही ब्लॉग की शुरुआत की गई है।
- पर बारात की विदाई हो तब न बाराती घर लौटें ? हकीकत यह है कि नवाब इकरामुल्ला ने कहने वालों की चुनौटी स्वीकार कर ली थी , और कसद कर लिया था कि बारात छः महीने से पहले हर्गिज विदा नहीं की जाएगी।
- चुनौटी से सुर्ती निकाली , बायीं हथेली पर रखा , चूना मिलाया और लगे मसलने - ‘ क्या सा ' ब ! आप भी ........... इतना क्यों मूड खराब करते हैं अपना ? लीजिए थोड़ा , ( सुर्ती आगे बढ़ाते हुए ) ।
- 200 वर्ष पूर्व नेपाल नरेश जंग बहादुर द्वारा भेंट किया गया जिंदा सालीग्राम , जिसे चुनौटी ( खईनी का डब्बा ) में रखकर भारत लाया गया था , आज लगभग नारियल से दो गुना आकार का हो गया है और निरंतर इस जिंदा सालीग्राम का विकास जारी है।
- संज्ञाएँ जैसे- सोंटा ( डंडा), छेंहुकी (पतला छड़ी), चट्टी (चप्पल), कचकाड़ा (प्लास्टिक), चिमचिमी (पोलिथिन बैग), खटिया, ढ़िबरी (तेलवाली बत्ती), चुनौटी (तम्बाकूदान), बेंग (मेंढ़क), गमछा, इनार (कुँआ), अमदूर (अमरूद), सिंघारा (समोसा), चमेटा (थप्पड़), कपाड़ (सिर), नरेट्टी (गरदन), ठोड़ (होंठ), गाछी (पेड़), डांड़ (डाल या तना), सोंड़ (मूल जड़), भन्साघर (रसोई घर), आदि।
- प्रमोद जी , आपने दिनकर जी को नहीं पढा तो पैजामा में चुनौटी खोंस कर नहीं टहलते...हम तो पहले चुनौटी खोंस कर टहलते थे...दिनकर जी की कवितायें पढ़ने के बाद चुनौटी खोंसकर टहलने की आदत चली गई....इसलिए कहते हैं कि कवि समाज का भला ही करता है...सब का...जो नहीं पढे उसका भी...और जो पढ़ ले, उसका भी...दिनकर जी से हमदोनो ने लाभ लिया...आख़िर हम ब्लॉगर जो ठहरे.....:-)
- प्रमोद जी , आपने दिनकर जी को नहीं पढा तो पैजामा में चुनौटी खोंस कर नहीं टहलते...हम तो पहले चुनौटी खोंस कर टहलते थे...दिनकर जी की कवितायें पढ़ने के बाद चुनौटी खोंसकर टहलने की आदत चली गई....इसलिए कहते हैं कि कवि समाज का भला ही करता है...सब का...जो नहीं पढे उसका भी...और जो पढ़ ले, उसका भी...दिनकर जी से हमदोनो ने लाभ लिया...आख़िर हम ब्लॉगर जो ठहरे.....:-)
- प्रमोद जी , आपने दिनकर जी को नहीं पढा तो पैजामा में चुनौटी खोंस कर नहीं टहलते...हम तो पहले चुनौटी खोंस कर टहलते थे...दिनकर जी की कवितायें पढ़ने के बाद चुनौटी खोंसकर टहलने की आदत चली गई....इसलिए कहते हैं कि कवि समाज का भला ही करता है...सब का...जो नहीं पढे उसका भी...और जो पढ़ ले, उसका भी...दिनकर जी से हमदोनो ने लाभ लिया...आख़िर हम ब्लॉगर जो ठहरे.....:-)