छांदोग्य उपनिषद का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- छांदोग्य उपनिषद ( 8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1) जाग्र त, (2) स्वप् न, (3) सुषुप्ति और (4) तुरीय अवस्था।
- छांदोग्य उपनिषद ने सत्यकाम के आख्यान में पिता के संदर्भ को नकारने और माँ के नाम से ही कुलगोत्र का परिचय देने वाली पहल को गौरवान्वित भी किया है।
- [ [ वैदिक साहित्य ]] ref > छांदोग्य उपनिषद ( 3,17 ,6 ) , जिसमें देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर [[ आंगिरस ]] का शिष्य कहा है।
- छांदोग्य उपनिषद में ‘ आदित्यो ब्रह्म इत्यादेश ' तथा वाल्मीकि रामायण में ‘ एषः ब्रह्मा च विष्णु च शिवः स्कन्ध प्रजापति ' कहकर सूर्य के महत्व को दर्शाया गया है।
- यह छांदोग्य उपनिषद के इस कथन से सिद्ध होता है कि स्वर्ण जोड़ने के लिए सुहागा , चांदी के लिए स्वर्ण एवं वंग के लिए सीसा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।
- आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।
- आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।
- आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।
- छांदोग्य उपनिषद ( 8 - 7 ) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- ( 1 ) जाग्रत ( 2 ) स्वप्न ( 3 ) सुषुप्ति और ( 4 ) तुरीय अवस्था।