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जलरूप का अर्थ

जलरूप अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. वृत्र के इस जलरूप शरीर से बड़ी-बड़ी नदियाँ उत्पन्न होके अगाध समुद्र में जाकर मिलती हैं , और जितना जल तालाब व कूप आदि में रह जाता है वह मानो पृथ्वी में शयन कर रहा है।।
  2. आदि-शक्ति की सु प्रेरणा से , तपः किया , प्रार्थना विष्णु की || २ - महाउदधि , जलरूप अयन २ में , सृष्टि की इच्छा में रत जो ; विष्णु नाम से रहा शयन रत , शेष ब्रह्म ३ पर वह नारायण |
  3. आदि-शक्ति की सु प्रेरणा से , तपः किया , प्रार्थना विष्णु की || २ - महाउदधि , जलरूप अयन २ में , सृष्टि की इच्छा में रत जो ; विष्णु नाम से रहा शयन रत , शेष ब्रह्म ३ पर वह नारायण |
  4. तुम अगिन् में दाहिका शक्ति , जल में शीतलता, सूर्य में सदा तेज:स्वरूप तथा कान्तिरूप, पृथ्वी में गन्धरूप, आकाश में शब्दरूप, चन्द्रमा और कमलसमूह में सदा शोभारूप, सृष्टि में सृष्टिस्वरूप, पालन-कार्य में भलीभाँति पालन करने वाली, संहारकाल में महामारी और जल में जलरूप में वर्तमान रहती हो।
  5. तुम अगिन् में दाहिका शक्ति , जल में शीतलता, सूर्य में सदा तेज:स्वरूप तथा कान्तिरूप, पृथ्वी में गन्धरूप, आकाश में शब्दरूप, चन्द्रमा और कमलसमूह में सदा शोभारूप, सृष्टि में सृष्टिस्वरूप, पालन-कार्य में भलीभाँति पालन करने वाली, संहारकाल में महामारी और जल में जलरूप में वर्तमान रहती हो।
  6. इसी वास्ते ऋषिजी प्रथम कार्य के सहित कारण की निवृत्ति का हेतु जो आत्म ज्ञान है , उसी को कहते है- हे राजन् ! तुम पृथ्वि नही हो और न तुम जलरूप हो , न अग्निरूप हो , न वायु रूप हो और न आकाशरूप हो ।
  7. जैसे सूर्य ओलों को गलाकर जल में मिला देता है , ओले होकर भी जल अपने जलरूप को नहीं त्याग सकता , वैसे ही सदगुरू जीवात्मा के अज्ञान को नष्ट करके ब्रह्म से मिला देते हैं , जीवात्मा में अज्ञान आने पर भी वह अपने चेतन स्वरूप का त्याग नहीं कर सकता।
  8. हे तात , जैसे समुद्र जड़स्वभाव ( जलरूप ) , चंचल , बड़े बड़े आवर्ती से ( भौंरियों से ) भरा और अनेक सर्प आदि हिंस्र जन्तुओं से पूर्ण है वैसे ही यह मन भी जड़ , चंचल , विस्तीर्ण आवर्तरूपी वृत्तियों से युक्त और काम आदि छः शत्रुरूपी सौंपों से व्याप्त है।
  9. जब तक आप इस पाप से मुक्ति नहीं पा लेते तब तक मुझसे नहीं मिल पाओगे अतः भगवान ने प्रायश्चित स्वरूप वहां पर एक कुण्ड का निर्माण किया तथा समस्त तीर्थों को आह्वान किया व उन्हें जलरूप द्वारा कुण्ड में प्रवेश करवाया तत्पश्चात पवित्र निर्मल जल मे स्नान कर पाप से मुक्ति प्राप्त की , किन्तु राधा उस कुण्ड से भी सुन्दर कुण्ड का निर्माण करके सभी को चकित करना चाहती थी।
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