जात पाँत का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इन लोगो को जिनकी काबिलियत बस इतनी ही है की ये जात पाँत के नाम पर डरा धमका कर , लुट खसोट कर और दंगा करवा कर वोट लेना जानते है , को आज इतनी इज्जत दी जाती है की एक बार तो शायद भगवान् को भी शर्म आ जाये .
- भारत के हिन्दु हिन्दु को जात पाँत में बाँट दिया वनबासी को आदिबासी बता बता भारत को बदनाम किया सेवा करने के नाम जहाँ पर एस्प्रिन बाँटी जाती है हिन्दु धर्म से दूर हटाने की तिकड़म अपनायी जाती हैं भारत को नये नये प्रान्तों में बाँटने की साजिस की जाती है उन ईसाई और मुसल्मा का भारतीय संसाधन पर मनमोहन जी तुमने ही कल पहला हक बतलाया है।
- वाह येह है मेरे सपनो का हिंदुस्तान , इन बातों से ऐसा लगता है जैसे हमारे भगत सिंग जी की सोच को साकार होने में अब ज़्यादा वक़्त नही लगेगा,उन्होने सोचा था की मेरा देश तभी आज़ादी का सही मायने समझ पाएगा जब वो ख़ुद को जात पाँत और धर्म से उठाकर अपनी ख़ुद की आज़ादी का मतलब समझ जाएगा, और तभी सच्ची आज़ादी के लिए दी गयी क़ुर्बानियाँ देशवाशियों के दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेंगी जै हिंद अरुण कु. पाठक
- जात पाँत पूछे नहिं की , हरि को भजे सो हरि को होई ' की घोषणा करने वाले रामानन्द वाक़ई कबीर के गुरु थे भी या उन्हे सिर्फ़ ब्राह्मणवादियों ने कबीर और उनकी मेधावी परम्परा पर अधिकार करने की नीयत से रामानन्द का आविष्कार कर लिया ? इस मामले में जो पारम्परिक मान्यता को आधुनिक और आधुनिक निर्मिति को पारम्परिक मानने की उलटबाँसी चली है उसको पुरुषोत्तम जी रामानन्दी और रामानुजी सम्प्रदाय की जातीय सरंचना और उनके आपसी रिश्तों के इतिहास के ज़रिये सीधा और अर्थवान करते हैं।
- झूलों पर पेंग बढ़ाऊँ मैं| भाँति-भाँति के सपनों में चुन-चुन कर प्यारे रंग भरूँ हरा रंग ले सब पर डालूँ हरियाली सी छा जाऊँ मैं | प्यारे-प्यारे फूल चुनूँ गुलदस्ता एक बनाऊँ मैं अनेकता में एकता का सच्चा रूप दिखाऊँ मैं | जब जी चाहे उसको देखें खुशबू से मन उनका महके नन्हों की वह ख़ुशी देख कर ममता से दुलराऊँ मैं| जात पाँत और रंग भेद से दूर बहुत वे सरल सहज और निश्चछल निर्मल उन पर अपना स्नेह लुटाऊँ मन का सुख पा जाऊँ मैं | बच्चों में मैं बच्चा बन कर