जिभ्या का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जिभ्या के बकवाद से , भड़के सारे दाँत |मँहगाई के वार से, सूखे छोटी आँत || आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत ।
- फैसला कर , फासला तो खुद-ब-खुद ही, लगा नपने | | कांगू मच्छर और भांजू मक्खी : आरोप-प्रत्यारोप छोड़ के अपने गाँव जिभ्या के बकवाद से, भड़के सारे दाँत |
- जिभ्या पूछे जात तो , टूटे दायीं पाँत ||मतनी कोदौं खाय के, माथा घूमें जोर |बेहोशी में जो पड़े, दे उनको झकझोर ||हाथों के सन्ताप से, बिगड़ गए शुभ काम |मजदूरी पावे नहीं, पड़े च...
- कोई कुछ कहता इससे पहले ही जिभ्या गरज़ सी पड़ी और मैं जो बत्तीस दातों के बीच रहकर हर चीज का रसास्वादन कराती हूं वह कुछ नहीं मैंने तो अपना सर थाम लिया अरे . .
- गंगा का पानी जुड़ता था , प्रीतम की जिन्दगानी से | हर बाला देवी की प्रतिमा जुडती मातु भवानी से |दुष्टों ने मुहँ मोड़ लिया पर गौरव-मयी कहानी से |जहर बुझी जिभ्या नित उगले, उल्टा-पुल्टा वाणी से |
- कहें भी कैसे , बोलना तो जीभ से ही है , लेकिन जिस शब्द से कहा जा सकता है , वह “ जिभ्या पर आवै नहीं ” , वह तो देह के परे है , विदेह है : “
- जिभ्या जिन बस में करी , तिन बस कियो जहान नहिं तो औगुन ऊपजे , कहि सब संत सुजान संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैंं कि जिन्होंने अपनी जिव्हा पर नियंत्रण कर लिया यह पूरा संसार ही उनका अपना हो गया।
- अहार करै मन भावता , जिभ्या केरे स्वाद नाक तलक पूरन भरै , क्यों कहिये वे साध संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि आदमी जीभ के स्वाद में पड़कर अपने मन को पसंद आने वाले आहार की खोज में लगा रहता है।
- अहार करै मन भावता , जिभ्या केरे स्वाद नाक तलक पूरन भरै , क्यों कहिये वे साध संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि आदमी जीभ के स्वाद में पड़कर अपने मन को पसंद आने वाले आहार की खोज में लगा रहता है।
- संयोग है कि आज ही कक्षा में गोरखनाथ की इस वाणी की चर्चा एक छात्र ने कर दी , मुझे यह आपको बताना प्रासंगिक लगा कि कितनी महिमा है लंगोट के पक्के सपूतों की गोरखनाथ की दृष्टि में - “यंद्री का लड़बड़ा जिभ्या का फूहड़ा ।