जीवन नौका का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- समय तेजी से बदल रहा है और विश्व भारत की ओर देख रहा है कि वह बदलती वैश्विक आर्थिक स्थिति के परिदृश्य में आर्थिक जीवन नौका के रूप में सक्रिय भूमिका अदा करे।
- वे इसका सारा श्रेय भारतीय दर्शन , अध्यात्म, हमारे जीवन मूल्य और तुलसी, सूर, मीरा तथा कबीर जैसे श्रेष्ठ कवि मनीषी को देते हैं जिन्होंने उनकी जीवन नौका को विकट झंझावत से निकालकर सुरक्षित गंतव्य तक पहुँचा दिया ।
- ही पानी के रूप में जीवन नौका विहार का अभिन्न हिस्से के रूप में , रास्ते में Langollen नहर पब के लाभ लेने के लिए नौका विहार के एक दिन के बाद अपनी भूख और प्यास को संतुष् ट.
- वे इसका सारा श्रेय भारतीय दर्शन , अध्यात्म , हमारे जीवन मूल्य और तुलसी , सूर , मीरा तथा कबीर जैसे श्रेष्ठ कवि मनीषी को देते हैं जिन्होंने उनकी जीवन नौका को विकट झंझावत से निकालकर सुरक्षित गंतव्य तक पहुँचा दिया ।
- वहीं कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनका अध्यात्म से लगाव होता है और वे ईश्वर-प्रेम रूपी पतवार को प्राप्त कर अपनी जीवन नौका को संसार सागर के पार उतार लेते हैं और जीवन मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
- तीसरी दुनिया ने ‘ जीवन नौका सिद्धान्त ' के बारे में भी सुना है , जिसका आशय है कि तीसरी दुनिया के उन जीवन-क्षम देशों को ही सहायता दी जाए जिनमें कुछ ऊर्जा शेष है और जो ऐसी सहायता का उपयोग करने में सक्षम हैं।
- जिन्दगी से मुझे जो सबसे बड़ा उपहार मिला है , वह है परिवार जनों का आत्मीय व्यवहार , जिसके सहारे मैं अपनी जीवन नौका को आगे ले जा रहा हूं और शिक्षा के क्षेत्र में सेरेब्रल पाल्सी वाले लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूं।
- प्रेम और शांति रूपी पुत्रों के अवसान पर धरती माता के गालों पर लाल रंग के आंसुओं की कल कल कर धाराएं बह रही थी और हिचकियाँ सुबक रही थी - “जय सोमनाथ ! ” गरम गरम रक्त के समुद्र में जीवन नौका की पतवारें छप-छप कर चल रही थी और गिद्ध मांस नोचते हुए कह रहे थे - ' जय सोमनाथ ! “ पताकाएँ टेढ़ी मेढ़ी होकर फरफरा रही थी और उनसे व्याकुल होकर व्योम धरती का चुम्बन लेता हुआ बोला -”
- विवाह तो है एक तैरती हुई जीवन नौका पतवार जिसकी थामता है पति और पत्नी पूरे विश्वास से देती उसको सहारा विवाह तो है जिन्दगी की गाड़ी पहिये हैं दो जिसके पति-पत्नी पहिये जब चलते प्यार की धुरी पर दौड़ती जाती जिन्दगी की गाड़ी जमीं चाहे हो जितनी ऊबड़-खाबड़ पहियों का संतुलन मगर बिगड़ जब जाता हो जाता सब कुछ तब गडबड जरा-सी भी ऊँची-नीची होती जब जमीं ठोकर खाकर तब लुढ़क जाती जिन्दगी की गाड़ी यही विवाह तब अभिशाप बन कर बन जाता बोझ जिन्दगी का।