जुगनूँ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- देह की रोशनी हो जाती है रात अगर लम्बी बहुत अँधेरा जब गहराता है हताशा और निराशा का पहरा उम्मीदों पर लग जाता है अर्थ अस्तित्व का प्रश्नों के बीच सिमट जाता है जलाकर देह को अपनी एक जुगनूँ तब अँधेरे के अस्तित्व से टकराता है रोशनी का वह अर्थ बताता है।
- आँसू भीगी मुस्कानों से हर चेहरे को तकता है प्यार नाम का बूढ़ा व्यक्ति जाने क्या - क्या बकता है अंजुरी भर यादों के जुगनूँ , गठरी भर सपनों का बोझ साँसों भर इक नाम किसी का पहरों - पहरों रटता है ढाई आखर का यह बौना , भीतर से सोना ही सोना बाहर से इतना साधा...
- आँसू भीगी मुस्कानों से हर चेहरे को तकता है प्यार नाम का बूढ़ा व्यक्ति जाने क्या - क्या बकता है अंजुरी भर यादों के जुगनूँ , गठरी भर सपनों का बोझ साँसों भर इक नाम किसी का पहरों - पहरों रटता है ढाई आखर का यह बौना , भीतर से सोना ही सोना बाहर से इतना साधा
- विधाता ने खेला लुका-छिपी तारों की झील-मिल चाँद की चमक बिजली की लुका-छिपी जुगनूँ की भुक-भुक पुरुष हो पुरुषार्थ करो यु जीवन को न व्यर्थ करो जीत लो जग को ले हाथ में मशाल को चलो प्रगति के पथ पे चुनौतीपूर्ण जीवन पथ पे हो जीवन पथ के तुम पथिक है मशाल ज्योति का प्रतिक शशिकांत निशांत शर्मा ' साहिल'
- विधाता ने खेला लुका-छिपी तारों की झील-मिल चाँद की चमक बिजली की लुका-छिपी जुगनूँ की भुक-भुक पुरुष हो पुरुषार्थ करो यु जीवन को न व्यर्थ करो जीत लो जग को ले हाथ में मशाल को चलो प्रगति के पथ पे चुनौतीपूर्ण जीवन पथ पे हो जीवन पथ के तुम पथिक है मशाल ज्योति का प्रतिक शशिकांत निशांत शर्मा ' साहिल' -
- आस्था की नदीपानीजीता है जीवन जबऊंचाई के दर्प काजम जाता है अस्तित्व तबउसका बर्फ -साअहम् की बर्फजब-जब पिघलती हैआस्था की नदीबह निकलती है…देह की रोशनीहो जाती हैरात अगर लम्बी बहुतअँधेरा जब गहराता हैहताशा और निराशा का पहराउम्मीदों पर लग जाता हैअर्थ अस्तित्व का प्रश्नों के बीच सिमट जाता हैजलाकर देह को अपनीएक जुगनूँ तबअँधेरे के अस्तित्व से टकराता हैरोशनी का वह अर्थ बताता है।
- साहिब , जो बात है दिल से लिख रहा हूँ जाने आपको बुरी लगे .आपका पूरा पोस्ट ही कविता होती है फिर यह पोस्ट तो इतनी सुंदर कविता की शब्द नहीं मिल रहे लिखने को .यह नहीं कविता में आनंद नहीं आया वोह अपनी जगह सुंदर है पर जो कैफ जुगनूँ की मोत का था उतरा नहीं .बतोर नजराना रात का जाने के लिखा था अर्ज कर रहा हूँ.
- अब अंधेरों में उजालों से डरा करते हैं ख़ौफ़ , जुगनूँ से भी खा करके मरा करते हैं दिल के दरवाजे पे दस्तक न किसी की सुनिये बदल के भेष लुटेरे भी फिरा करते हैं उनका अन्दाज़े-करम उनकी इनायत है यही वो मेरे हक़ के लिये मेरा बुरा करते हैं गुनाह वो भी किये जो न किये थे मैंने यूँ कमज़र्फ़ों के किरदार गिरा करते हैं तंज़ करके गयी बहार भी मुझपे ही 'अमित' कभी सराब भी बागों को हरा करते हैं
- अब अंधेरों में उजालों से डरा करते हैं ख़ौफ़ , जुगनूँ से भी खा करके मरा करते हैं दिल के दरवाजे पे दस्तक न किसी की सुनिये बदल के भेष लुटेरे भी फिरा करते हैं उनका अन्दाज़े-करम उनकी इनायत है यही वो मेरे हक़ के लिये मेरा बुरा करते हैं गुनाह वो भी किये जो न किये थे मैंने यूँ कमज़र्फ़ों के किरदार गिरा करते हैं तंज़ करके गयी बहार भी मुझपे ही 'अमित' कभी सराब भी बागों को हरा करते हैं
- अंधियारे की कुटिल हंसी से स्वप्निल आशाएं थर्रायीं चारों ओर भयंकर तम है राह नहीं पड़ती दिखलाई साथ मेरे वह ज्योति नहीं है जिसे थाम आगे बढ़ जाऊं जिसकी तेजोमय ज्वाला से अंतर्मन का तमस मिटाऊं बस नन्ही अभिलाषाओं के टिम टिम करते जुगनूँ हैं संग मेरे जो हँसते गाते - आँखमिचौली खेल रहे हैं खेल खेल में उनको बस में कर लेती हूँ झट उनको अपनी मुट्ठी में भर लेती हूँ जब अवसादों के घेरे में मेरी सांस जकड़ जाती है मेरे इन बंद हाथों से तब - वह उजास फूट आती है मुस्काकर कहती है ;