तेरहीं का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हमारे द्वारा बिना किसी के नाम का उल्लेख की गई चार कंधों की टीप से किसी को ऐतराज़ है पर उस से नहीं जो किसी व्यक्ति की जीवित रहते हुए ही तेरहीं या बरखी की बात करे .
- अष्टमी-पूजन के लिये जुगत लगा कर सरकारी लोग अपने अपने घर गांव की तरफ़ रवाना हुए हमने अपने मातहतों से कहा - “ भई , रावण को पूरी तरह से निपटा के फ़ूंक-फ़ांक के आना और हां तेरहीं के लिये मत रुकना वरना इलेक्शन अर्ज़ेंट की डाक आते ही लफ़ड़ा हो जाता है ..
- इंसान के जाने के बाद एक अजीब सा खालीपन उभरता है . ..जिसे वक्त धीरे धीरे भरता है ...!देखा जाये तो समाज मृत्यु को उत्सव की तरह ही मनाता है ...मृत्यु के बाद होने वाले रस्म बड़े अजीब होते हैं .....तेरहीं पर तो लगभग शादी जैसा ही माहौल हो जाता है ...फिर तो ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार पकड़ ही लेती है ....!!
- ********* क्यों तुम इतना खटते थे बाबा क्यों दरबार लगाते थे क्यों हर एक आने वाले को अपना मीत बताते थे ********* सब के सब विदा कर तुमको तेरहीं तक ही साथ रहे अब हम दोनों माँ-बेटी के संग केवल संताप रहे ! ********* दुनिया दारी यही पिताश्री सबके मतलब के अभिवादन बाद आपके हम माँ-बेटी कर लेगें छोटा अब आँगन !
- इसमें शामिल नहीं चिता की लकड़ी , तेल , कफ़न , तेरहीं का भोजन रामनाथ बहुत हँसमुख था उसने पाया एक संतुष् ट-सुखी जीवन चोरी कभी नहीं की-कभी कभार कह दिया अलबत् ता बीबी से झूठ एक च् यूँटी भी नहीं मारी- गाली दी दो-तीन महीने में एक आध बच् चे छोड़े सात भूल चुके हैं गॉंव के सब लोग अब उसकी हर बा त.
- इसमें शामिल नहीं चिता की लकड़ी , तेल , कफ़न , तेरहीं का भोजन रामनाथ बहुत हँसमुख था उसने पाया एक संतुष् ट-सुखी जीवन चोरी कभी नहीं की-कभी कभार कह दिया अलबत् ता बीबी से झूठ एक च् यूँटी भी नहीं मारी- गाली दी दो-तीन महीने में एक आध बच् चे छोड़े सात भूल चुके हैं गॉंव के सब लोग अब उसकी हर बा त.
- ********* क्यों तुम इतना खटते थे बाबा क्यों दरबार लगाते थे क्यों हर एक आने वाले को अपना मीत बताते थे ********* सब के सब विदा कर तुमको तेरहीं तक ही साथ रहे अब हम दोनों माँ-बेटी के संग केवल संताप रहे ! ********* दुनिया दारी यही पिताश्री सबके मतलब के अभिवादन बाद आपके हम माँ-बेटी कर लेगें छोटा अब आँगन ! • गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
- दूसरा ऋण , उसी पुराणपंथी भाषा में पितृ-ऋण है जो पिता की कृपा से किसी जाति-विशेष में उत्पन्न होने के कारण मुंडन, छेदन, ब्याह, गौना, दसवाँ, तेरहीं आदि रस्मों को निपटाने के लिए फिर उन्हीं दुलारी सहुआइनों, उन्हीं दातादीनों, उन्हीं मंगरू साहुओं से लेना पड़ता है जो अब पहले से भी ज्यादा चतुर हैं, जिनके लड़के अब आई. ए. एस. में घुसकर या बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर उसी तबके में घुस रहे हैं जो देव-ऋण बाँटनेवालों का है।