दुरभिसन्धि का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यह एक ऐसी दुरभिसन्धि है जिसके सिलसिले में जहाँ एक समय के नारे याद आते हैं कि “हँस के ले लिया पाकिस्तान , लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान” वहीं दुनिया को मध्ययुग में लौटानेवाले ऐसे दावे सुनने को मिलते हैं कि इस्लाम को अपना पुराना गौरवपूर्ण विस्तृत साम्राज्य फिर से हासिल करना ही होगा ।
- अंत में एक होली जुलूस निकाला गया , जिसमें राजीवलोचन साह ने एक विशिष्ट अर्थच्छाया और व्यंजना के साथ उत्तराखंड की जनभावनाओं से खिलवाड़ करने वाले राजनीतिक दलों, तिब्बत में नरसंहार कर रही चीनी सरकार, अमरीका से एक दुरभिसन्धि में बंध रही भारत सरकार, स्थानीय निकायों के निर्वाचन में खड़े होने वाले प्रत्याशियों आदि के लिए आशीष वचन उचारे।
- अंत में एक होली जुलूस निकाला गया , जिसमें राजीवलोचन साह ने एक विशिष्ट अर्थच्छाया और व्यंजना के साथ उत्तराखंड की जनभावनाओं से खिलवाड़ करने वाले राजनीतिक दलों , तिब्बत में नरसंहार कर रही चीनी सरकार , अमरीका से एक दुरभिसन्धि में बंध रही भारत सरकार , स्थानीय निकायों के निर्वाचन में खड़े होने वाले प्रत्याशियों आदि के लिए आशीष वचन उचारे।
- लेकिन वर्दी ख़ानख़ाना के प्राणदण्ड , दरबारियों की ईर्ष्या , अकबर की माता हमीदा बानो और धाय माहम अनगा की दुरभिसन्धि एवं बाबर की बेटी गुलरुख़ बेगम की लड़की सईदा बेगम से शादी तथा अमीरों के सामने अकबर के रूप में उपस्थित होने के विकल्प ने बैरम ख़ां को सन् 1560 में अकबर के पूर्ण राज्य ग्रहण करने से धीरे- धीरे विद्रोही बना दिया था।
- आज जब फासिज़्म एक बार फिर हमारा दरवाज़ा खटखटा रहा है , तो ऐसी भीषण परिस्थिति में देश के धूर्त शासक वर्गों के पतित सत्ता-तन्त्र की हर तरह की दुरभिसन्धि के विरुद्ध और भी धारदार प्रतिवाद और प्रतिरोध के लिये सभी जनपक्षधर मित्रों एवं अधिकतम साथियों की एकजुटता ही आज के इस कठिन दौर में हम सब के सामने इतिहास द्वारा प्रदान किया गया सबसे महत्वपूर्ण कार्यभार है।
- लोक- लाज के कारण बुरे कार्यों से बचे रहने और सत्कर्म करने के फलस्वरूप लोक- सम्मान का सुख मिलने की इच्छा एक सीमा तक उचित है , पर जब उच्छृंखल हो उठती है , तो अवांछनीय उपाय सोचकर उच्च पदवी पाने की लिप्सा उठ खड़ी होती है , तब सम्मान के वास्ते अधिकारियों को एक और धकेल कर उनका स्थान स्वयं ग्रहण करने की दुरभिसन्धि की जाने लगती है ।।
- यह कविता इसलिए भी ध्यान खींचती है , क्योंकि यह आदमी-आदमी के बीच दरार पैदा करने वाले तीनों तत्वों - वर्ग , धर्म और वर्ण - की प्रचालन शक्ति की दुरभिसन्धि को खोल कर सामने रख देती है , जहां साम्प्रदायिकता और जातिवाद के कुलाबे एक-दूसरे से मिलते नज़र आते हैं और ऐसा तफ़रका पैदा करते हैं जिसे वर्ग और पेशे की एकता भी मिटा नहीं पा रही है .