धूप-छाँह का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- वास्तव में उनका समूचा काव्य एक चिरन्तन और असीम प्रिय के प्रति निवेदित है जिसमें जीवन की धूप-छाँह और गम्भीर चिन्तन की इन्द्रधनुषी कोमलता है।
- लगा कि पूरे कंपाउंड के दफ्तरों के एक-ही से हाल है और ज्यादातर लोगों का दिन धूप-छाँह की जद्दोजहद में ही डूबा रहा . .. ।
- तब उसने जीवन में वैचित्र्य लाने के लिए दिन और रात , आँधी-पानी , बादल-मेह , धूप-छाँह इत्यादि बनाए ; और फिर कीड़े-मकोड़े , मकड़ी-मच्छर , बर्रे-बिच्छू और अन्त में साँप भी बनाए।
- तब उसने जीवन में वैचित्र्य लाने के लिए दिन और रात , आँधी-पानी , बादल-मेह , धूप-छाँह इत्यादि बनाए ; और फिर कीड़े-मकोड़े , मकड़ी-मच्छर , बर्रे-बिच्छू और अन्त में साँप भी बनाए।
- कवि देखता हैः एक आभासी दुनिया की मायावी धूप-छाँह में उसकी भाषा के सकरूण शब्दों के अर्थ निष्करूण अनर्थ में बदले जा रहे हैं , हिन्दी का इस्तेमाल इश्तेहारों का संवाहक बनने में है .
- बातों ही बातों में उन्होंने बतलाया कि जब वह पहले-पहल अमृतराय से मिलने इलाहाबाद स्थित उनके आवास ‘ धूप-छाँह ' में गये हुए थे तो सुधाजी ( अमृतराय की पत्नी ) ने उनकी मुलाकात अमृतराय से कराई।
- द्वारिका में भटकते सुदामा को कवि की ताकीद है- ' बहुत भोले हो सुदामा / नहीं समझोगे इस कौतुक को / मत भूलो अपने गाँवों को / जिनके विश्वासों की धूप-छाँह में कहीं / अभी भी बची है / एक जगमगाती द्वारिका।'
- द्वारिका में भटकते सुदामा को कवि की ताकीद है-‘बहुत भोले हो सुदामा / नहीं समझोगे इस कौतुक को / मत भूलो अपने गाँवों को / जिनके विश्वासों की धूप-छाँह में कहीं / अभी भी बची है / एक जगमगाती द्वारिका।'
- अब्बा पर्याय हैं आँगन के उस पीपल का जो जाने कब से खड़ा है अकेला निहारता सिद्धबाबा पहाड़ी पर बने मन् दि र को बदलते मौसम धूप-छाँह के खेल दिन-रात की कारीगरी में लिप्त प्रकृति डिगा नहीं पाई अब्बा का मन
- इनके बारे में जब कहा जाता कि ये नहीं थे तब भी थे ये सृजन के पूर्व और प्रलय के बाद भी फैलें और सिमट जाएँ क्षण में धूप-छाँह , सर्दी-गर्मी , आँधी-पानी हर हाल में ये ख़ुश , हर हाल में ख़ामोश