नमेरु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यूँ तो इन ग्रंथों में अशोक , बकुल , तिलक , कुरबक- इन चार ही वृक्षों से सम्बन्धित कवि-प्रसिद्धियाँ मिलती हैं , परन्तु अन्यत्र कुछ स्थानों पर कर्णिकार ( अमलतास ) , चंपक ( चंपा ) , नमेरु ( सुरपुन्नाग ) , प्रियंगु , मंदार , आम आदि वृक्ष-पुष्पों के भी स्त्री-क्रियायों से उदगमित होने के उल्लेख हैं ।
- यूँ तो इन ग्रंथों में अशोक , बकुल , तिलक , कुरबक- इन चार ही वृक्षों से सम्बन्धित कवि-प्रसिद्धियाँ मिलती हैं , परन्तु अन्यत्र कुछ स्थानों पर कर्णिकार ( अमलतास ) , चंपक ( चंपा ) , नमेरु ( सुरपुन्नाग ) , प्रियंगु , मंदार , आम आदि वृक्ष-पुष्पों के भी स्त्री-क्रियायों से उदगमित होने के उल्लेख हैं ।
- और अच्छा तो और लगने लगता है यह नमेरु तब जब यह अनुभव करता हूँ कि जिस कम्प्यूटर से यह नमेरु-पाती लिख रहा हूँ , उसका कैबिनट भी बन सकता है नमेरु वृक्ष की लकड़ियों से , और नाव भी बन सकती है , और रेलवे के शयनयान की सीट भी बन सकती है और प्लाइवुड भी क्योंकि इसकी लकड़ियाँ विश्वसनीय और दीर्घावधि उपयुक्त जो होती हैं ।
- और अच्छा तो और लगने लगता है यह नमेरु तब जब यह अनुभव करता हूँ कि जिस कम्प्यूटर से यह नमेरु-पाती लिख रहा हूँ , उसका कैबिनट भी बन सकता है नमेरु वृक्ष की लकड़ियों से , और नाव भी बन सकती है , और रेलवे के शयनयान की सीट भी बन सकती है और प्लाइवुड भी क्योंकि इसकी लकड़ियाँ विश्वसनीय और दीर्घावधि उपयुक्त जो होती हैं ।
- सोचता हूँ , रमणियों की यह अन्यान्य क्रियायें - पैरों की लाली, बाँकी चितवन, अयाचित मजाक, गाना-गुनगुनाना, इठलाना, मुस्कराना, निःश्वांस-उच्छ्वास - क्या ये कामिनियों के बाण हैं - और ये खुल-खिल जाने वाले आम्र,अशोक, प्रियंगु, नमेरु, कर्णिकार, मंदार - क्या इस बाण से पहली ही नजर में घायल चरित्र हैं, अवतार हैं ? संस्कृत कवि-सम्प्रदाय व अन्योक्तियों में रस सदा इसी कोमलता या श्रृंगाराभास के आरोप से ही आता है न !
- सोचता हूँ , रमणियों की यह अन्यान्य क्रियायें - पैरों की लाली , बाँकी चितवन , अयाचित मजाक , गाना-गुनगुनाना , इठलाना , मुस्कराना , निःश्वांस-उच्छ्वास - क्या ये कामिनियों के बाण हैं - और ये खुल-खिल जाने वाले आम्र , अशोक , प्रियंगु , नमेरु , कर्णिकार , मंदार - क्या इस बाण से पहली ही नजर में घायल चरित्र हैं , अवतार हैं ? संस्कृत कवि-सम्प्रदाय व अन्योक्तियों में रस सदा इसी कोमलता या श्रृंगाराभास के आरोप से ही आता है न !
- सोचता हूँ , रमणियों की यह अन्यान्य क्रियायें - पैरों की लाली , बाँकी चितवन , अयाचित मजाक , गाना-गुनगुनाना , इठलाना , मुस्कराना , निःश्वांस-उच्छ्वास - क्या ये कामिनियों के बाण हैं - और ये खुल-खिल जाने वाले आम्र , अशोक , प्रियंगु , नमेरु , कर्णिकार , मंदार - क्या इस बाण से पहली ही नजर में घायल चरित्र हैं , अवतार हैं ? संस्कृत कवि-सम्प्रदाय व अन्योक्तियों में रस सदा इसी कोमलता या श्रृंगाराभास के आरोप से ही आता है न !
- मेरी रुचि अचानक ही इन वृक्षों के सम्बन्ध में बहुत कुछ जानने की तरफ हो गयी , और अपने आस-पास इनमें से कुछ वृक्षों को देखकर मन कल्पनाजनित वही दृश्य देखने लगा जिनमें सुन्दरियों के पदाघात से अशोक के फूल खिल रहे हों,अमलतास स्त्रियों के नृत्य से पुष्पित हो रहा हो, स्त्रियों की गलबहियाँ से कुरबक हँस कर खिल गया हो, चंपा फूल गया हो स्त्रियों की हँसी से चहककर, गुनगुना रही हों स्त्रियाँ और विकसित हो गया हो नमेरु, छूने भर से विकसित हुआ हो प्रियंगु और कुछ कहने भर से स्त्रियों के फूल गया हो मंदार आदि-आदि ।