नामकर्म का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ब्राह्मणों और बान्धवादिकों को भोज कराके तिलक भेंट देकर नामकर्म का विधान पर्ण होता है ।
- जिस कर्म के उदय से शरीर के पुद्गलों में कृष्णता प्राप्त होती है वह कृष्णवर्ण नामकर्म है।
- त्रस नामकर्म - जिसके उदय से द्वीन्द्रियादिक जीवों में उत्पन्न हो , उसे त्रस नामकर्म कहते हैं।
- त्रस नामकर्म - जिसके उदय से द्वीन्द्रियादिक जीवों में उत्पन्न हो , उसे त्रस नामकर्म कहते हैं।
- यत : गति नामकर्म जीवों को अनेक रंगभूमियों पर चलाता है अतएव इसे गति कहते हैं (पंचसंग्रहगाथा, ५९)।
- शरीरनामकर्म - जिसके उदय से आत्मा के लिए शरीर की रचना होती है वह शरीर नामकर्म है।
- उपघात नामकर्म - ' उपेत्य घात : उपघात : ' अर्थात पास आकर घात होना उपघात है।
- परघात नामकर्म - जिसके उदय से दूसरे का घात करने वाले अंगोपांग हो उसे परघात नामकर्म कहते हैं।
- परघात नामकर्म - जिसके उदय से दूसरे का घात करने वाले अंगोपांग हो उसे परघात नामकर्म कहते हैं।
- संहनन नामकर्म - जिसके उदय से हड्डियों की संधि में बंधन विशेष होता है वह संहनन नामकर्म है।