निरानन्द का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- तब भी मैं इसी तरह समस्त कवि जीवन में व्यर्थ भी व्यस्त लिखता अबाध गति मुक्त छन्द , पर सम्पादकगण निरानन्द वापस कर देते पढ़ सत्वर रो एक-पंक्ति-दो में उत्तर।
- तब भी मैं इसी तरह समस्त कवि जीवन में व्यर्थ भी व्यस्त लिखता अबाध गति मुक्त छन्द , पर सम्पादकगण निरानन्द वापस कर देते पढ़ सत्वर रो एक-पंक्ति-दो में उत्तर।
- काव्य भी आनन्द है-आनन्द से भी एक और पग आगे की वस्तु-स्वर्गानन्द सहोदर और उसका आनन्द भी उसकी अखण्डता में ही है खण्डित होने पर तो वह आनन्द न रह कर निरानन्द हो जाएगी।
- चूंकि आप ब्रह्मा , विष्णु आदि देवताओं द्वारा शिव अर्थात् आनन्द कहे गये हैं अतः हे योगीश्वर आप मुझे जो अज्ञान के कारण निरानन्द हूँ (नमः) उत्तम भाव वाला कल्याण्कारी ज्ञान अर्थात् आत्म ज्ञान दें।
- काव्य भी आनन्द है-आनन्द से भी एक और पग आगे की वस्तु-स्वर्गानन्द सहोदर और उसका आनन्द भी उसकी अखण्डता में ही है खण्डित होने पर तो वह आनन्द न रह कर निरानन्द हो जाएगी।
- शब्दगीत उड़ता हूं स्वच्छन्द शब्दों के आकाश में निरानन्द नए-नए शब्द-क्षितिजों में गाते मौन आत्मविभोर कभी निर्मौन पर्वत के ऊपर मंडराते चक्कर लगाते , नीली घाटियों , वनों , मरुस्थलों के ऊपर नदियों , सागर के आर-पार मैं शब्द हूं।
- तस्मान् मे देहि योगीश भद्रं ज्ञानं सुभावनम्॥ 16 ॥ चूंकि आप ब्रह्मा , विष्णु आदि देवताओं द्वारा शिव अर्थात् आनन्द कहे गये हैं अतः हे योगीश्वर आप मुझे जो अज्ञान के कारण निरानन्द हूँ ( नमः ) उत्तम भाव वाला कल्याण्कारी ज्ञान अर्थात् आत्म ज्ञान दें।
- बार-बार यही लगता है कि मनुष्य के दुख और उसके निरानन्द के अनेक कारणों में से सम्भवतः एक कारण है उसकी यह इच्छा कि वस्तुओं को उसके मन के अनुसार ही घटित होना चाहिये , और जब ऐसा नहीं होता तो पीड़ा अपना सर उठा लेती है ।
- तुम अपने गीतों में इतिहास का मर्मभेद स्वर मुद्रित करते सभी स्वार्थों से मुक्त प्रेम-राग से जन जन का मन हर्षित करते कौन जाने तुमाहारी भाषा और उसका मर्म कौन जाने तुम्हारी आंखों देखा धर्म-अधर्म हरहाल में तुम हो निरानन्द , प्रेम , अभिलाषी समय साक्षी , चेतना के क्षितिज में लगाते चक्कर ओ पाखी।
- ऊपर उठती जमीन , ऊपर उठते कगार उठती है सड़क पुल से होती हुई हमवार , और भी ऊपर सड़क उठती है हवा में घुसती आकाश में जैसे तलवार और लटक जाती है अगति के अधर में निराधार निर्लिप्त , निरानन्द , निश्चल , रक्ताक्त ! आ गयी लो गंगा त्रिभुवनतारिणी ! विश्व-वमन-धारिणी , रोग-शोक-कारिणी , रौरव-विहारिणी !