निरालम्ब का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- बाद में वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे जतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रान्त , (वर्तमान उत्तर प्रदेश), और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रान्तिकारियों के निकट आये।
- बाद में वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे जतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रांत , (वर्तमान उत्तर प्रदेश), और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रांतिकारियों के निकट आए।
- बाद में वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे जतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रान्त , ( वर्तमान उत्तर प्रदेश ) , और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रान्तिकारियों के निकट आये।
- सूरदास ने भी कहीं निर्गुण भक्ति का खंडन किया हो , ऐसा संकेत तो नहीं मिलता ; हां उपासना की दृष्टि से उन्होंने निर्गुण भक्ति को कठिन अवश्य कहा हैद्र रूप रेख गुन जाति जुगुत बिनु , निरालम्ब मन चकृत धावै।
- सूरदास ने भी कहीं निर्गुण भक्ति का खंडन किया हो , ऐसा संकेत तो नहीं मिलता ; हां उपासना की दृष्टि से उन्होंने निर्गुण भक्ति को कठिन अवश्य कहा हैद्र रूप रेख गुन जाति जुगुत बिनु , निरालम्ब मन चकृत धावै।
- कितना दिलचस्प है कि अपनी कठिनमति आलोचना से व्योमेश नें , इसमें अपने समय का भाष्य खोजने की सहज पाठकीय चेष्टाओं पर विराम लगा कर इसे, ‘पुराने को देखना सीखा जाना चाहिए' की निरालम्ब प्रतिज्ञा से रचित सावित करने का अवान्तर प्रयत्न किया है।
- कितना दिलचस्प है कि अपनी कठिनमति आलोचना से व्योमेश नें , इसमें अपने समय का भाष्य खोजने की सहज पाठकीय चेष्टाओं पर विराम लगा कर इसे, 'पुराने को देखना सीखा जाना चाहिए' की निरालम्ब प्रतिज्ञा से रचित सावित करने का अवान्तर प्रयत्न किया है।
- जिस अव्यय पुरूष को श्रीकृष्ण ने सृष्टि का आलम्बन् कहा है , निश्चय ही वह सृष्टि के आरम्भ काल का निरालम्ब आलम्ब है , वरना वह आलम्बन कैसे बन सकता है हमारी सृष्टि में सप्त लोक माने गए हैं- भू , भूव :
- केवल ब्रह्म के अधिन होकर ही वह निरालम्ब के अर्थ को जान पाता है मैं की अवधारणा का त्याग ही उसे चेतना के उच्च शिखर तक पहुँचाता है सभी बंधनों के त्याग द्वारा ही उस परब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है और यही निरालम्बोपनिषद का महत्व है .
- सवाल यह है कि इस कविता का मकसद अगर प्राचीन कथा के माध्यम से आधुनिक का भाष्य करना नहीं था , तो यह ‘ अपना होना ' कैसे सिद्ध करती है ? कितना दिलचस्प है कि अपनी कठिनमति आलोचना से व्योमेश नें , इसमें अपने समय का भाष्य खोजने की सहज पाठकीय चेष्टाओं पर विराम लगा कर इसे , ‘ पुराने को देखना सीखा जाना चाहिए ' की निरालम्ब प्रतिज्ञा से रचित सावित करने का अवान्तर प्रयत्न किया है।