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निवृत्तिनाथ का अर्थ

निवृत्तिनाथ अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. वस्तुत : यह काव्यमय प्रवचन है जिसे ज्ञानेश्वर ने अपने गुरु निवृत्तिनाथ के निदर्शन में अन्य संतों के समक्ष किया था।
  2. गहिनीनाथ गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे . नाथ सम्प्रदाय योग-साधना परविशेष जोर देता है; परन्तु निवृत्तिनाथ को श्रीकृष्ण की सगुण उपासनाप्रिय थी.
  3. ऐसा मानाजाता है कि महादेव ने निवृत्तिनाथ , विष्णु ने ज्ञानदेव, ब्रह्मा नेसोपानदेव तथा आदिमाया ने मुक्ताबाई के रूप में जन्म लिया था.
  4. अपने बड़े भाई निवृत्तिनाथ के आदेश पर ज्ञानेश्वर जी ने इसीस्तम्भ के पास बैठकर गीता पर मराठी भाषा में ज्ञानेश्वरी टीका लिखी थी .
  5. निवृत्तिनाथ ने कहा- ‘ मुक्ता ! जल्दी से कुत्ते को मार , सब चील्हे ले जायेगा तो तू ही भूखी रहेगी ! '
  6. निवृत्तिनाथ , ज्ञानेश्वर , सोपानदेव और इनकी छोटी बहिन मुक्ताबाई- सब के सब जन्म से सिद्ध योगी , परमज्ञानी , परमविरक्त एवं सच्चे भगवद्भक्त थे।
  7. इनके पिता का नाम विट्ठल पंत था ; जिनकी चार संतानों में सबसे बड़े निवृत्तिनाथ , उसके बाद ज्ञानेश्वर , सोपानदेव और पुत्री मुक्ताबाई थे।
  8. ऐसे कई ऋद्धि-सिद्धि के धनी योगी हुए , जिनमें हनुमान जी, ज्ञानेश्वर महाराज आदि जन्मजात योग सम्पन्न आत्माएँ थीं, फिर भी तत्त्व ज्ञान के लिए पूर्णता पाने के लिए, आत्मसाक्षात्कार के लिए उनसे भी ऊँची अवस्था में स्थित भगवान श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में हनुमान जी, निवृत्तिनाथ जी के चरणों में ज्ञानेश्वरजी व ज्ञानेश्वरदेव जी के चरणों में चांगदेव जी नतमस्तक हुए थे।
  9. ऐसे कई ऋद्धि-सिद्धि के धनी योगी हुए , जिनमें हनुमान जी , ज्ञानेश्वर महाराज आदि जन्मजात योग सम्पन्न आत्माएँ थीं , फिर भी तत्त्व ज्ञान के लिए पूर्णता पाने के लिए , आत्मसाक्षात्कार के लिए उनसे भी ऊँची अवस्था में स्थित भगवान श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में हनुमान जी , निवृत्तिनाथ जी के चरणों में ज्ञानेश्वरजी व ज्ञानेश्वरदेव जी के चरणों में चांगदेव जी नतमस्तक हुए थे।
  10. ऐसे कई ऋद्धि-सिद्धि के धनी योगी हुए , जिनमें हनुमान जी , ज्ञानेश्वर महाराज आदि जन्मजात योग सम्पन्न आत्माएँ थीं , फिर भी तत्त्व ज्ञान के लिए पूर्णता पाने के लिए , आत्मसाक्षात्कार के लिए उनसे भी ऊँची अवस्था में स्थित भगवान श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में हनुमान जी , निवृत्तिनाथ जी के चरणों में ज्ञानेश्वरजी व ज्ञानेश्वरदेव जी के चरणों में चांगदेव जी नतमस्तक हुए थे।
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