पायु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- 10 . सात्विक अहंकार से ही उत्पन्न पाँच कर्मेन्द्रियाँ 1 . वाक , 2 . पाणि , 3 . पाद , 4 . पायु और 5 . उपस्थ हैं।
- 10 . सात्विक अहंकार से ही उत्पन्न पाँच कर्मेन्द्रियाँ 1 . वाक , 2 . पाणि , 3 . पाद , 4 . पायु और 5 . उपस्थ हैं।
- सात्विक अहंकार से उत्पन्न पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ श्रोत्र , त्वक , चक्षु , रसन और प्राण हैं तथा पाँच कर्मेन्द्रियाँ वाक , पाणि , पाद , पायु और उपस्थ हैं।
- सात्विक अहंकार से उत्पन्न पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ श्रोत्र , त्वक , चक्षु , रसन और प्राण हैं तथा पाँच कर्मेन्द्रियाँ वाक , पाणि , पाद , पायु और उपस्थ हैं।
- जब वीर्य स्त्री के ‘शरीर में प्राप्त हो उस समय अपना पायु ( गुदा) और योनींद्रिय को ऊपर संकुचित कर और वीर्य को खैंच कर स्त्री गर्भाशय में स्थिर करे ।
- द्यौलोक ही शिर है , अन्तरिक्ष लोक ही नाभि है, सूर्य्य नेत्र, वायु नासिका, दिशाएं कान, प्रजापति प्रजेनेन्द्रिय, मृत्यु पायु (गुदा), लोकपाल बाहु, चन्द्रमा मन और यम ही भगवान् की भृकुटी है।
- जब वीर्य स्त्री के ‘ शरीर में प्राप्त हो उस समय अपना पायु ( गुदा ) और योनींद्रिय को ऊपर संकुचित कर और वीर्य को खैंच कर स्त्री गर्भाशय में स्थिर करे ।
- सांख्य दर्शन में पुरुष , प्रकृति, मन, पाँच महाभूत ( पृथ्वी , जल , वायु, अग्नि और आकाश ), पाँच ज्ञानेद्री ( कान , त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा ) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं।
- ४ आदि की गणना में शिर , मुख, केश, श्मश्रूणि, प्राण, चक्षु, श्रोत्र, जिह्वा, वाच, मनस्, अंगुली, अंग, बाहु, हस्त, कर्ण, आत्मा, उर, पृष्ठ, उदर, अंस, ग्रीवा, श्रोणी, ऊरू, अरत्री, जानूनि, नाभि, पायु, अण्ड, पसस, जंघा, पद, लोम, त्वचा, मांस, अस्थि एवं मज्जा का उल्लेख है.
- बस मन तो यही करता है की कागजों में रख दू विचार न मिली प्रशंसा तो लिख न पायु इतना भी नहीं हूँ लाचार तू देख यहाँ पर देख , क्यों लगता है की मैं लिख नहीं सकता पढना है तो पढ़ले इसे वर्ना नाप सीधे अपना रास्ता