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पितृ-ऋण का अर्थ

पितृ-ऋण अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले- ” हे कुन्ती ! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है , क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण , ऋषि-ऋण , देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता।
  2. श्रीमन्महर्षि वेदव्यास प्रणीत महाभारत , प्रथम खण्ड , आदिपर्व , सम्भव पर्व , पाण्डु-पृथा-संवाद विषय एक सौ उन्नीसवें अध्याय में वर्णन है कि मनुष्य इस पृथ्वी पर चार प्रकार के ऋणों ( पितृ-ऋण , देव-ऋम , ऋषि-ऋण और मानव-ऋण हमें चुकाना चाहिए।
  3. और चूँकि देव-ऋण और पितृ-ऋण देनेवाले-दोनों ही किस्म के लोग एक ही वर्ग और एक ही पार्टी के हैं , इसलिए होरी को इन ऋणों से अलग-अलग तंत्र में भले ही फर्क मालूम पड़े, ऋण देनेवाले जानते हैं कि वे एक ही बिरादरी के हैं।
  4. ऐसे में , जो आदमी , आपके बेटे को पितृ-ऋण से मुक्त करने के लिए अपनी बेटी आपको दे रहा है , वह कुछ भी नहीं ? आपके परिवार पर इतना बड़ा उपकार करने के बाद भी सारी बातें समझने की जिम्मेदारी उन्हीं की ? आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं ? उनका दोष यही कि वे लड़कीवाले हैं ? '
  5. ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले , “हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?” कुन्ती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
  6. ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले , “हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?” कुन्ती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
  7. “ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले , ”हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?“ कुन्ती बोली, ”हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
  8. दूसरा ऋण , उसी पुराणपंथी भाषा में पितृ-ऋण है जो पिता की कृपा से किसी जाति-विशेष में उत्पन्न होने के कारण मुंडन, छेदन, ब्याह, गौना, दसवाँ, तेरहीं आदि रस्मों को निपटाने के लिए फिर उन्हीं दुलारी सहुआइनों, उन्हीं दातादीनों, उन्हीं मंगरू साहुओं से लेना पड़ता है जो अब पहले से भी ज्यादा चतुर हैं, जिनके लड़के अब आई. ए. एस. में घुसकर या बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर उसी तबके में घुस रहे हैं जो देव-ऋण बाँटनेवालों का है।
  9. तब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया- हे प्रभु , नन्दनन्द , गोविन्द ! आपने मेरे लिए अनेकों कथायें सुनाई हैं , आज आप कृपा करके ऐसा व्रत या कथा सुनायें जिसके करने से मनुष्य को रोग-चिन्ता का भय समाप्त हो और उसको पुत्र की प्राप्ति हो , हे प्रभो , बिना पुत्र के जीवन व्यर्थ है , पुत्र के बिना मनुष्य नरकगामी होता है , पुत्र के बिना मनुष्य पितृ-ऋण से छुटकारा नहीं पा सकता और न ही उसका पुन्नग नामक नरक से उद्धार हो सकता है .
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