फ़रीक़ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ख़रीद व फ़रोख़्त में सहूलत ज़रूरी है जहां आदिलाना मीज़ान हो और वह क़ीमत मुअय्यन हो जिससे ख़रीदार या बेचने वाले किसी फ़रीक़ पर ज़ुल्म न हो , इसके बाद तुम्हारे मना करने के बावजूद अगर कोई ‘ ाख़्स ज़ख़ीराअन्दोज़ी करे तो उसे सज़ा दो लेकिन इसमें भी हद से तजावुज़ न होने पाए।
- और दोनों फ़रीक़ तलवारों , नेज़ों , तीरों और दूसरे हथयारों से मुसल्लह होकर एक दूसरे के सामने सफ़आरा हो गए हज़रत की तरफ़ से अहले कूफ़ा के सवारों पर मालिके अश्तर और पियादों पर अम्मार बिन यासिर और बसरा के सवारों पर सहल इब्ने हुनेफ़ और पियादों पर क़ैस बिन सअद सिपहा सालार मुतअय्यन ( नियुक्त ) हुए।
- चुनांचे क़ाज़ी को यह इल्म हो जाएं कि फ़लाँ फ़रीक़ हक़ ब जानिब है और फ़लां बातिल है तो वह अपने इल्म पर बेना करते हुए फ़रीक़े अव्वल के हक़ में फ़ैसला नही करेगा बल्कि किसी नतीजे पर पहुचने के लिये जो शरई और मुताआरिफ़ तरीक़े हैं उन्ही पर चलेगा , और उन से जो नतीजा निकलेगा उसी का पाबंद होगा।
- क़ानूने शहादत ( साक्ष्य नियम ) - की इस लिये ज़रुरत ( आवश्यकता ) है कि अगर एक फ़रीक़ ( पक्ष ) दूसरे फ़रीक़ ( पक्ष ) के किसी हक़ ( अधिकार ) का इंकार करे तो शहादत ( साक्ष्य ) के ज़रीए एपने हक़ का इस्बात ( अधिकार को प्रमाणित ) कर के उसे महफ़ूज़ ( सुरक्षित ) कर सके।
- क़ानूने शहादत ( साक्ष्य नियम ) - की इस लिये ज़रुरत ( आवश्यकता ) है कि अगर एक फ़रीक़ ( पक्ष ) दूसरे फ़रीक़ ( पक्ष ) के किसी हक़ ( अधिकार ) का इंकार करे तो शहादत ( साक्ष्य ) के ज़रीए एपने हक़ का इस्बात ( अधिकार को प्रमाणित ) कर के उसे महफ़ूज़ ( सुरक्षित ) कर सके।
- मैं हक़ीक़ते अमर को तुम से बयान किये देता हूं और वह यह है कि उन्हों ने ( अपने रिश्तेदारों ) की तरफ़दारी ( पक्षपात ) किया तो तरफ़दारी बुरी तरह की , और तुम घबरा गए , तो बुरी तरह घबरा गए और ( इन दोनों फ़रीक़ ) बेजा तरफ़दारी करने वाले और घबरा उठने वाले के दरमियान ( बीच ) फ़ैसला ( निर्णय ) करने वाला अल्लाह है।
- जब दोनों फ़रीक़ को देखा जाता है तो जिन लोगों ने हज़रत उसमान की नुसरत से हाथ उठा लिया था , उन में उम्मुल मोमिनीन आइशा और रिवायते जमहूर के मुताबिक़ अशरए मुबश्शिरा बक़ीया अहले शूरा , अन्सारो मुहाजिरीने अव्वलीन , असहाबे बद्र और दीगर मुमताज़ व जलीलुल क़द्र अफ़राद नज़र आते हैं और दूसरी तरफ़ बारगाहे खिलाफ़त के चन्द ग़ुलाम और बनी उमैया की चन्द फ़र्दें दिखाई देती हैं।
- क्योंकि दूर रस नज़रें ( दूरदर्शी निगाहें ) फ़त्हो शिकस्त ( विजय पराजय ) का अन्दाज़ा ( अनुमान ) तो लगा सकती है और जंग के नताइज ( युद्ध के परिणामों ) को भांप ले जा सकती हैं लेकिन दोनों फ़रीक़ ( पक्ष ) के मक़तूलीन ( आहतों ) की सहीह सहीह तअदाद से आगाह ( सूचित ) कर देना उस की हुदूदे पर्वाज़ ( उड़ान सीमा ) से बाहर है।
- जब वो दाऊद पर दाख़िल हुए तो वह उनसे घबरा गया उन्होंने अर्ज़ की डरिये नहीं हम दो फ़रीक़ ( पक्ष ) हैं कि एक ने दूसरे पर ज़ियादती की है ( 14 ) ( 14 ) उनका यह क़ौल एक मसअले की फ़र्ज़ी शक्ल पेश करके जवाब हासिल करना था और किसी मसअले के बारे में हुक्म मालूम करने के लिये फ़र्ज़ी सूरतें मुक़र्रर कर ली जाती हैं और निर्धारित व्यक्तियों की तरफ़ उनकी निस्बत कर दी जाती है .
- मगर उस ने यह जवाब दिया कि हम किसी तरह ख़ूने उसमान को रायगा नहीं जाने देंगे और अब हमारा फ़ैसला तो तलवार ही करेगी चुनांचे ज़िलहिज्जा सन 36 हिजरी में दोनों फ़रीक़ में जंग की ठन गई और दोनों तरफ़ से मैदाने कारज़ार अपने हरीफ़ के मुक़ाबिले के लिये मैदान में उतर आये हज़रत की तरफ़ से मैदाने मुक़ाबिले में आने वाले हुज्र इब्ने अदीए किन्दी , शीस इब्ने रबई , ख़ालिद बिन मुअम्मर , ज़ियाद बिन नज़र , ज़ियाद बिन खसफ़ए तमीमी , सईद बिन क़ैस , क़ैस बिन सअद , और मालिक बिन हारिसे अश्तर थे।