बेख़बरी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- टोबा टेक सिंह , खोल दो, घाटे का सौदा, हलाल और झटका, ख़बरदार, करामात, बेख़बरी का फ़ायदा, पेशकश, कम्युनिज़्म, तमाशा, बू, ठंडा गोश्त, घाटे का सौदा, हलाल और झटका, ख़बरदार, करामात, बेख़बरी का फ़ायदा, पेशकश, काली शलवार
- बनी नज्जार ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म के हुक्म से दिय्यत अदा कर दी उसके बाद मुक़ैय्यस ने शैतान के बहकावे में एक मुसलमान को बेख़बरी में क़त्ल कर दिया और दिय्यत के ऊंट लेकर मक्के को चलता हो गया और मुर्तद हो गया .
- मम् मा ' जिगर अंकल ' ( हमारे नियमित ग्रॉसरी-स् टोर वाले ) से ' पारले-जी ' का पैकेट लाईं थीं और बेख़बरी में उन् होंने पैकेट रखा सेन् टर-टेबल पर और मुझे वॉकर पर रख दिया फिर लग गयीं रसोई में ' डिनर ' तैयार करने ।
- उनके हालात की बेख़बरी और उनके दयार की ख़ामोशी तूले ज़मान और बोअद मकान की बिना पर नहीं है बल्कि उन्हें मौत का वह जाम पिला दिया गया है जिसने उनकी गाोयाई को गूंगेपन में और उनकी समाअत को बहरेपन में और उनकी हरकात को सुकून में तब्दील कर दिया है।
- ऐ च्यूंटियों , अपने घरों में चली जाओ तुम्हें कुचल न डालें सुलैमान और उनके लश्कर बेख़बरी में ( 9 ) { 18 } ( 9 ) यह उसने इसलिये कहा कि वह जानती थी कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम नबी हैं , इन्साफ़ वाले हैं , अत्याचार और ज़ियादती आपकी शान नहीं है .
- और शायद कि अल्लाह तआला इस सुल्ब ( संधि ) की वजह से इस उम्मत के हालात दुरुस्त कर दे , और वह बेख़बरी ( अचेत अवस्था ) में गला घोंट कर तैयार न की जाए कि हक़ ( सत्य ) वाज़ेह ( स्पष्ट ) होने से पहले जल्दी में कोई क़दम न उठा बैठे , और पहले ही गुमराही के पीछे लग जाए।
- तेज़ धूप में मेरे मालवा में दीगर दरख्तों को जहाँ झुरझुरी सी आ रही है और शाख़ें सूखी सी हैं वहीं अमलतास के पत्ते हरे कच्च हैं और फूल के इन झुमकों के तो क्या कहने . निसर्ग के लिये जिस तरह की बेपरवाही है और नई पीढ़ी में बेख़बरी का भाव है ऐसे में सोचता हूँ बहुत से पेड़ों के बीच ये अमलतास बड़ा वीराना और अकेला सा ही है .
- ग़ालिब - ' दिल से तेरी निगाह जीगर तक उतर गयी … ' , ' इश्क मुजको नहीं वहशत ही सही … ' , ' आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक … ' सीमाब - ' ऐ बेख़बरी दिल को दीवाना बना देना … ' , और ज़ौक़ - ' लायी हयात आए कज़ा ले चली चले … ' को अपनी आवाज़ के जादू से सहगल ने घर घर तक पहुंचाया ।
- काउरिसमाकी के किरदार जीवन के सबसे निचले तबक़े से आते हैं , वे रोज़ एक जैसा काम कर रहे हैं, एक जैसा संघर्ष कर रहे हैं, एक जैसे सपने देख रहे हैं, एक जैसे तरीक़ों से उन्हें पूरा करना चाहते हैं, वे सब ग़रीब हैं और अपनी ग़रीबी से इतना बेज़ार हैं कि उसमें निहायत बेख़बरी में धंस चुके हैं और अपनी मनुष्यता में इतने ‘ढीठ' हैं कि हर तरफ़ से मार खाने, हार जाने के बाद भी अपने एकमात्र सपने को छोड़ नहीं पाते.
- मुसल्सल = लगातार उफ्ताद = मुसीबत मह्व-ए-दुआ = दुआ में तल्लीन असीर-ए-दाम-ए-बला = मुसीबत के फंदे का क़ैदी कैफ़-ए-बेख़ुदी = बेख़बरी का आनंद अज़ल = वह समय जिस की शुरुआत न हुई हो अर्ज़-ए-मुद्द ' आ = मतलब की बात कहने के सिवा बरसर-ए-साहिल-ए-मुकाम = साहिल (किनारे) के मुकाम के आगे नाख़ुदा = नाविक, मल्लाह किस तरह फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार : हसरत मोहानी किसी ने एक शेर याद दिलाया पिछले दिनों .... “उन के ख़त की आरज़ू है उन के आमद का ख़याल किस तरह फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार” बेहतरीन शेर है और बेहतरीन ग़ज़ल हसरत मोहानी की .....