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भव-बंधन का अर्थ

भव-बंधन अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है , सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
  2. श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है , सृष्टि में भगवान ने देवर्षिनारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र(जिसे नारद-पाञ्चरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
  3. श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है , सृष्टि में भगवान ने देवर्षिनारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र(जिसे नारद-पाञ्चरात्रन्> भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
  4. श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है , सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र(जिसे नारद-पाञ्चरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
  5. श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है , सृष्टि में भगवान ने देवर्षिनारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र ( जिसे नारद-पाञ्चरात्र भी कहते हैं ) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
  6. ' हां , महाराज ! ' मित्र ने और आविष् ट होते हुए कहा , ' वह छूट तो सबसे बड़ी मुक्ति है , पर यह साधारण मुक्ति ही है , जैसे बाबा विश् वनाथ के परमसिद्ध भक् त स् वीकारमात्र से इस भव-बंधन से मुक्ति दे सकते हैं।
  7. ब्रह्मा रचित सुघड़ धरती पर , मानव ने अनुपम गुण पाया पूरित फलित हुआ बुद्धि से , पंच तत्व का घड़ा बनाया आत्मा रही अमर इस जग में , तृष्णा संग संग राह बनाती यह शरीर-रज रज हो जाता , तृष्णा लेकिन बढ़ते जाती निकली एक बून्द जब घर से , तरु से प्यासा पत्ता टूटा तृष्णा बढ़ती रही प्रतिक्षण , चाहे यह भव-बंधन छूटा
  8. इसका तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है कि ईश्वर को जब किसी प्राणी पर दया करके उसे अपनी शरण में लेना होता है और कल्याण के पथ पर ले जाना होता है तो उसे भव-बंधन से एवं कुप्रवृत्तियों से छुड़ाने के लिए ऐसे दुखदायक अवसर उत्पन्न करते हैं , जिनकी ठोकर खाकर मनुष्य अपनी भूल को समझ जाये और उसका सच्चा भक्त बन जाये ।
  9. हमने जो कविता लिखी वह कुछ इस तरह थी- ब्रह्मा रचित सुघड़ धरती पर , मानव ने अनुपम गुण पायापूरित फलित हुआ बुद्धि से ,पंच तत्व का घड़ा बनायाआत्मा रही अमर इस जग में, तृष्णा संग संग राह बनाती यह शरीर-रज रज हो जाता , तृष्णा लेकिन बढ़ते जातीनिकली एक बून्द जब घर से , तरु से प्यासा पत्ता टूटातृष्णा बढ़ती रही प्रतिक्षण , चाहे यह भव-बंधन छूटा ऐसा ही एक दो पद और थे जो अभी याद नहीं।
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