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मूर्द्धन्य का अर्थ

मूर्द्धन्य अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. हर आदमी की दृष्टि में उसकी कीमत दो कौडी की थी , लेकिन जब उसने अपने आप को बदल लिया ईश्वरीय सत्ता से तादात्म्य बिठा लिया तो भगवान के भक्तों में सदन कसाई मूर्द्धन्य हो गए।
  2. यदि मैथिल मिश्र जी को संदेह हो तो उन ग्रामों में¹ ' ब्राह्मण सम्बन्ध ' नाम की पुस्तक से स्पष्ट है कि मैथिल मूर्द्धन्य श्रोत्रिय दरभंगा महाराज का भी सम्बन्ध परम्परया भूमिहार ब्राह्मणों से मिलता है।
  3. यह पश् चिम ब्राह्मणों का मैथिलों के साथ विवाह और परस्पर खाने-पीने की प्रथा आज तक प्रचलित है और बहुत से मैथिल ब्राह्मण मूर्द्धन्य पश् चिम ब्राह्मणों में इसी कारण मिलते चले जा रहे हैं , जिनका निरूपण आगे करेंगे।
  4. डा . रति सक्सेना हिंदी की उन थोड़े से मूर्द्धन्य कवयित्रियों में से हैं जिनकी काव्य-रचना प्रक्रिया से गुजरते हुए मुझे यह भासमान होता है कि उन्होंने कविता की स्थापित क्लासिकी और वर्जनाओं पर अपना ध्यान ज्यादा केन्द्रित नहीं किया, बल्कि खुद की अपनी
  5. परिचय : डा.रति सक्सेना हिंदी की उन थोड़े से मूर्द्धन्य कवयित्रियों में से हैं जिनकी काव्य-रचना प्रक्रिया से गुजरते हुए मुझे यह भासमान होता है कि उन्होंने कविता की स्थापित क्लासिकी और वर्जनाओं पर अपना ध्यान ज्यादा केन्द्रित नहीं किया, बल्कि खुद की अपनी...
  6. मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा , अनुस्वार , अनुनासिकता , कण्ठ्य , तालव्य , मूर्द्धन्य , ओष्ठ्य , वस्त्र्य , दन्त्य , दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ , श्वास की मात्रा , उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण , संयुक्त व्यंजन , विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।-
  7. मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा , अनुस्वार , अनुनासिकता , कण्ठ्य , तालव्य , मूर्द्धन्य , ओष्ठ्य , वस्त्र्य , दन्त्य , दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ , श्वास की मात्रा , उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण , संयुक्त व्यंजन , विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।-
  8. गांधी जी के विचारों को तिलांजलि देकर हमारे देश के अग्रणी परिचालक , हमारी राजनीति के मूर्द्धन्य नियंता और निन्यानवे प्रतिशत से अधिक हमारे राजनेता भले ही अपने पथ से पूरी तरह भ्रष्ट हो चुके हों , लेकिन फ़िल्म संसार के मध्य अब भी उनकी कुछ याद बाकी है।
  9. यदि क्षत्रियों के स्वीकार की आवश्यकता हो तो क्षत्रिय मूर्द्धन्य विष्णुपरायण रीवाँ नरेश महाराज श्री रघुनाथसिंह , जी . सी . एस . आई . ने अपने हाथों लिखित ' रामस्वयंवर ' के 189 वें पृष्ठ में जो वेंकटेश् वर प्रेस में संवत् ! 1955 में छपा हैं , ऐसा लिखा है :
  10. उन्होंने न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानडे और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे मूर्द्धन्य नेताओं के समाज सुधार कार्यक्रम का इसलिए विरोध किया क्योंकि ये महानुभाव भारत के परंपरागत सामाजिक मूल्यों में आस्था नहीं रखते थे बल्कि भारत को हूबहू पश्चिमी सभ्यता के अनुरूप ढालने के लिए पुरानी सब परंपराओं को मिटा देने को तैयार थे।
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