लावण्यमय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मैं तुम्हारे लावण्यमय सौन्दर्य को देख कर अपनी सुन्दर रानियों को भी भूल गया हूँ और मैं तुम्हें ले जा कर अपने रनिवास की शोभा बढ़ाना चाहता हूँ।
- कौन फिर फिर जाता ? बँधा हुआ पाश में ही सोचता जो सुख-मुक्ति कल्पना के मार्ग से , स्थित भी जो चलता है , पार करता गिरि-श्रृंग , सागर-तरंग , अगम गहन अलंध्य पथ , लावण्यमय सजल , खोला सहृदय स्नेह।
- कौन फिर फिर जाता ? बँधा हुआ पाश में ही सोचता जो सुख-मुक्ति कल्पना के मार्ग से , स्थित भी जो चलता है , पार करता गिरि-श्रृंग , सागर-तरंग , अगम गहन अलंध्य पथ , लावण्यमय सजल , खोला सहृदय स्नेह।
- पंकज राग के शब्दों में ' एक पल' में भूपेन हज़ारिका ने आसामी लोकसंगीत और भावसंगीत का बहुत ही लावण्यमय उपयोग “फूले दाना दाना” (भूपेन, भूपेन्द्र, नितिन मुकेश), बिदाई गीत “ज़रा धीरे ज़रा धीमे” (उषा, हेमंती, भूपेन्द्र, भूपेन) जैसे गीतों में किया।
- पीछे से जब उन्होंने शंकरजी का करोड़ों कामदेवों को लजाने वाला सोलह वर्ष की अवस्था का परम लावण्यमय रूप देखा तो वे देह-गेह की सुधि भूल गईं और शंकर पर अपनी कन्या के साथ ही साथ अपनी आत्मा को भी न्योछावर कर दिया।
- पीछे से जब उन्होंने शंकरजी का करोड़ों कामदेवों को लजाने वाला सोलह वर्ष की अवस्था का परम लावण्यमय रूप देखा तो वे देह-गेह की सुधि भूल गईं और शंकर पर अपनी कन्या के साथ ही साथ अपनी आत्मा को भी न्योछावर कर दिया।
- आर्चर ने अपनी २४ पृष्ठ की पुस्तिका " गढ़वाल की चित्रकला के १० रंगीनचित्र भी दिये हैं तथा उनके विषय में लिखा हैः" गढ़वाल में एक वैसी हीसुन्दर, रसीली, लावण्यमय, रोमांचक और चित्ताकर्षक शैली का विकास हुआ जैसीशैली पंजाब की एक अन्य पहाड़ी रियासत कांगड़ा में विकसित हुई.
- पंकज राग के शब्दों में ' एक पल ' में भूपेन हज़ारिका ने आसामी लोकसंगीत और भावसंगीत का बहुत ही लावण्यमय उपयोग “ फूले दाना दाना ” ( भूपेन , भूपेन्द्र , नितिन मुकेश ) , बिदाई गीत “ ज़रा धीरे ज़रा धीमे ” ( उषा , हेमंती , भूपेन्द्र , भूपेन ) जैसे गीतों में किया।
- लेकिन फिर इसका जवाब भी तो तुरंत मिल जाता है , जब दशरथ पुत्र राम स्वयं लंका नरेश रावण के व्यक्तित्व को देखकर एक बार प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते और लक्ष्मण से कहते हैं कि रावण में कांतिमय रूप-सौंदर्य सर्वगुण-संपन्न, लावण्यमय व लक्षणयुक्त होते हुए भी अधर्म बलवान नहीं होता तो वह देवलोक का स्वामी बन जाता।
- लेकिन फिर इसका जवाब भी तो तुरंत मिल जाता है , जब दशरथ पुत्र राम स्वयं लंका नरेश रावण के व्यक्तित्व को देखकर एक बार प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते और लक्ष्मण से कहते हैं कि रावण में कांतिमय रूप-सौंदर्य सर्वगुण-संपन्न , लावण्यमय व लक्षणयुक्त होते हुए भी अधर्म बलवान नहीं होता तो वह देवलोक का स्वामी बन जाता।