वृषाकपि का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इन्द्र के आने पर इन्दाणी ने इन्द्र से वृक्षाकपि की शिकायत की , तो इन्द्र ने वृषाकपि पर क्रोध नहीं करते हुए अपितु यह कहकर वे इन्द्राणी को शान्त कर देते हैं , कि वृषाकपि मेरा घनिष्ठ मित्र है , उसके बिना मुझे सुख नहीं प्राप्त हो सकता- नाहमिन्द्राणि शरण सख्युर्वृषाकपेर्ऋते।
- इन्द्र के आने पर इन्दाणी ने इन्द्र से वृक्षाकपि की शिकायत की , तो इन्द्र ने वृषाकपि पर क्रोध नहीं करते हुए अपितु यह कहकर वे इन्द्राणी को शान्त कर देते हैं , कि वृषाकपि मेरा घनिष्ठ मित्र है , उसके बिना मुझे सुख नहीं प्राप्त हो सकता- नाहमिन्द्राणि शरण सख्युर्वृषाकपेर्ऋते।
- मूल रुद्र भव कहे जाते हैं । रैवन्तेय । भीम । वामदेव । वृषाकपि । अज । समपाद । अहिर्बुधन्य । बहुरूप । महान ये दस रुद्र हैं । उरुक्रम । शक्र । विवस्वान । वरुण । पर्जन्य । अतिवाहु । सविता । अर्यमा । धाता । पूषा । त्वष्टा । भग ये बारह आदित्य हैं ।
- जिन विद्वानों में ऋग्वेद के वृषाकपि सूक्त का अध्ययन किया है , उनका विचार है कि यह सूक्त भारतीय लोककर्म की किसी खोयी हुयी , लुप्त हो गई , श्रंखला के , कड़ी के अंश हैं ( ऋग्वेद , 10 / 86 ) और इनका रूपान्तर आज के नृ-पशु ( आधा मनुष्य और आधा पशु ) की आकृति वाले देवता की उपासना में हो गया है।
- कुंडली के भावों में पहला विष्णु का पांचवां ब्रह्मा का और नवां शिव का , उसी प्रकार से दूसरा अजैकपाद , छठा त्र्यम्बक का और दसवां रैवत का माना जाता है , तीसरा अहिर्बुन्ध का सातवां अपाराजित और ग्यारहवां वृषाकपि का माना जाता है , चौथा शम्भु आठवां कपाली और बारहवां भाव कपर्दी का माना जाता है , इन्ही नामों के अनुसार कालसर्प दोषों का वर्गीकरण किया गया है।
- यहां फिर यह बात उल्लेखनीय हो जाती है कि ऋगवेद में भी ' वृषाकपि ` का नाम आया हैं वानरों और राक्षसों के विषय में भी अब यह अनुमान , प्राय : ग्राह्य हो चला है कि ये लोग प्राचीन विन्ध्य-प्रदेश और दक्षिण भारत की आदिवासी आर्येतर जातियों के सदस्य थे ; या तो उनके मुख वानरों के समान थे , जिससे उनका नाम वानर पड़ गया अथवा उनकी ध्वजाओं पर वानरों और भालुओं के निशान रहे होंगे।
- यहां फिर यह बात उल्लेखनीय हो जाती है कि ऋगवेद में भी ' वृषाकपि ` का नाम आया हैं वानरों और राक्षसों के विषय में भी अब यह अनुमान , प्राय : ग्राह्य हो चला है कि ये लोग प्राचीन विन्ध्य-प्रदेश और दक्षिण भारत की आदिवासी आर्येतर जातियों के सदस्य थे ; या तो उनके मुख वानरों के समान थे , जिससे उनका नाम वानर पड़ गया अथवा उनकी ध्वजाओं पर वानरों और भालुओं के निशान रहे होंगे।