व्यान वायु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- स्वेदा सृक्स्रावणश्चापि पञ्चधर चेष्टयत्यपि ॥ ( सु ० नि ० अ ० १ ) महर्षि चरक के अनुसार शरीर के प्रत्येक अवयव में होने वाली क्रिया व्यान वायु के आधीन है ।।
- अपान वायु नीचे की और जाती है , व्यान वायु से संकोच तथा प्रसार होता है , समान वायु से संतुलन बना रहता है और उदान वायु ऊपर की और जाती है और जब मनुष्य प्रबुद्ध हो जाता है तो वह इन सभी वायु को आत्मा-साक्षात्कार की खोज में लगाता है !
- अपान वायु नीचे की और जाती है , व्यान वायु से संकोच तथा प्रसार होता है , समान वायु से संतुलन बना रहता है और उदान वायु ऊपर की और जाती है और जब मनुष्य प्रबुद्ध हो जाता है तो वह इन सभी वायु को आत्मा-साक्षात्कार की खोज में लगाता है !