सदावर्त का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जिन्हें देवालय , धर्मशाला , सदावर्त , प्याऊ जैसे परमार्थ प्रयोजन चलाने की इच्छा हो , उनके लिए अत्यन्त दूरदर्शिता से भरापूरा हाथों- हाथ सत्परिणाम उत्पन्न करने वाला एक ही परमार्थ हर दृष्टि से उपयुक्त दीखता है कि वे “ चल ज्ञान मन्दिर ” का निर्माण कर सकने जैसा प्रयास जुटाएँ।
- जिन्हें देवालय , धर्मशाला , सदावर्त , प्याऊ जैसे परमार्थ प्रयोजन चलाने की इच्छा हो , उनके लिए अत्यन्त दूरदर्शिता से भरापूरा हाथों- हाथ सत्परिणाम उत्पन्न करने वाला एक ही परमार्थ हर दृष्टि से उपयुक्त दीखता है कि वे “ चल ज्ञान मन्दिर ” का निर्माण कर सकने जैसा प्रयास जुटाएँ।
- युग समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए हम कुछ समय के लिए धर्मशाला , मंदिर , कूप , तालाब , औषधालय , प्याऊ , सदावर्त आदि ख्याति प्रदान करने वाले निर्माणों से हाथ खींच सकते हैं और सर्वप्रथम , सर्वोत्तम एवं सामयिक प्रज्ञा प्रसार को अग्रगामी बनाने के लिए प्रयत्नरत हो सकते हैं।
- युग समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए हम कुछ समय के लिए धर्मशाला , मंदिर , कूप , तालाब , औषधालय , प्याऊ , सदावर्त आदि ख्याति प्रदान करने वाले निर्माणों से हाथ खींच सकते हैं और सर्वप्रथम , सर्वोत्तम एवं सामयिक प्रज्ञा प्रसार को अग्रगामी बनाने के लिए प्रयत्नरत हो सकते हैं।
- जब विद्यातन्त्र तिरोहित हो गया और उसके हर कोने पर उदरपूर्ति से सम्बन्धित शिक्षा ही कब्जा किए हुए हो , तब सद्ज्ञान के केन्द्रों का संचालन एवं निर्माण कहाँ से बन पड़े ? धर्मशालाएँ बनवाकर नाम कमाने वाले अधिक- से अधिक इतना कर पाते हैं कि कोई मुफ्त दवा देने वाला औषधालय , सदावर्त या प्याऊ खुलवा दें।
- जब विद्यातन्त्र तिरोहित हो गया और उसके हर कोने पर उदरपूर्ति से सम्बन्धित शिक्षा ही कब्जा किए हुए हो , तब सद्ज्ञान के केन्द्रों का संचालन एवं निर्माण कहाँ से बन पड़े ? धर्मशालाएँ बनवाकर नाम कमाने वाले अधिक- से अधिक इतना कर पाते हैं कि कोई मुफ्त दवा देने वाला औषधालय , सदावर्त या प्याऊ खुलवा दें।
- यथा-खोद-खोद कर पूछने पर , बासी मुंह ही आफिस चली गयी , सगापन वे इसी के कारण जान पाए , दो फुल्के खाकर ही बस कर दी है , लच्छन , रुल गये , सदावर्त या कंजकें अष्टमी की - मोहन राकेश , भीष्म साहनी , देवेन्द्र सत्यार्थी के साथ कृष्णा सोबती की शैली को याद करवा रहे हैं।
- यथा-खोद-खोद कर पूछने पर , बासी मुंह ही आफिस चली गयी , सगापन वे इसी के कारण जान पाए , दो फुल्के खाकर ही बस कर दी है , लच्छन , रुल गये , सदावर्त या कंजकें अष्टमी की - मोहन राकेश , भीष्म साहनी , देवेन्द्र सत्यार्थी के साथ कृष्णा सोबती की शैली को याद करवा रहे हैं।