स्वांतःसुखाय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हिन्दी साहित्य जगत के सामने वर्तमान समय में जैसी चुनौतियाँ हैं उन्हें ध्यान में रखकर अब ' स्वांतःसुखाय ' के सोच के साथ रचना कर्म करने से कोई विशेष काम चलने वाला नहीं है।
- हिन्दी साहित्य जगत के सामने वर्तमान समय में जैसी चुनौतियाँ हैं उन्हें ध्यान में रखकर अब ' स्वांतःसुखाय ' के सोच के साथ रचना कर्म करने से कोई विशेष काम चलने वाला नहीं है।
- फिर गोस्वामी जी ने इसे ‘ स्वांतःसुखाय ' लिखने की घोषणा कैसे की ? दरअसल बात यह है कि तत्कालीन शासक अपने दरबार मे चाटुकार कवियों को रखते थे और उनकी आर्थिक समस्या का समाधान कर दिया करते थे ।
- अभी आप स्वांतःसुखाय लिख रहे हैं मगर ये पात्र ग़ज़ब ढा सकते हैं उन अवसरों पर जब ब्लागजगत लड़खड़ा रहा होता है , प्रमादग्रस्त दिखता है, बौखला रहा होता है , गालियां बक रहा होता है या गालियां खा रहा होता है।
- अभी आप स्वांतःसुखाय लिख रहे हैं मगर ये पात्र ग़ज़ब ढा सकते हैं उन अवसरों पर जब ब्लागजगत लड़खड़ा रहा होता है , प्रमादग्रस्त दिखता है, बौखला रहा होता है , गालियां बक रहा होता है या गालियां खा रहा होता है।
- अहंकार रहित , जीवन से संतुष्ट , हर हाल में हंसते रहने वाले इंजिनियरिंग स्नातक नीरज गोस्वामी , स्वांतःसुखाय के लिए एशिया , यूरोप , अमेरिका , आस्ट्रेलिया महाद्वीपों के अनेक देशों के भ्रमण के बाद अभी भी कौन जाने उनके पांव कितने और देशों की सीमाएं पार करेंगे।
- अहंकार रहित , जीवन से संतुष्ट , हर हाल में हंसते रहने वाले इंजिनियरिंग स्नातक नीरज गोस्वामी , स्वांतःसुखाय के लिए एशिया , यूरोप , अमेरिका , आस्ट्रेलिया महाद्वीपों के अनेक देशों के भ्रमण के बाद अभी भी कौन जाने उनके पांव कितने और देशों की सीमाएं पार करेंगे।
- मनोज जी , अपनी ओर से इस सवाल पर सोचा कई बार ,क्या केवल स्वांतःसुखाय ?या फिर सर्व सुलभताय नम: ?अन्यथा केवल चुनिन्दा मस्तिष्कों की खातिर ?इन सबके अपने प्लस माइनस , भारी तर्क वितर्क , बड़ी फिसलन , छूटा कोई नहीं , सब अनिश्चित पर प्राथमिकता कहूं तो तीसरे विकल्प पर अटके है !हटाएंप्रत्युत्तर
- विमर्श साहित्य को उष्मा देते है उसे स्वांतःसुखाय से आगे ले जाकर मानवीय सरोकारों से संपृक्त करते हैं , हाँ यह जरुरी है कि साहित्य के नाम पर सिर्फ विचारधारा की पथरीली जमीन न हो , नारे और झंडे न हो , जैसा की एक दौर में माना गया और आज भी कुछ कवि-कुलधारक जिसे साहित्य की एकमात्र शर्त मानते हैं .
- आपने लेखन का उद्देश्य स्वांतःसुखाय और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की अभिलाषा से परे होने की बात कही है , इससे मैं भी सौ फीसदी सहमत हूं कि आदर्श स्थिति तो यही है , बस थोड़ा अलग मैं यह कहता हूं कि यदि आदमी सम्मान की अभिलाषा में भी कुछ अच्छा लिख रहा है तो वह कोई अपराध नहीं कर रहा क्योंकि सम्मान की प्यास और लोगों के ध्यानाकर्षण की प्रवृत्ति मनुष्य के मूल स्वभाव में है ।