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हंड़िया का अर्थ

हंड़िया अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. लेकिन 36 गढी मे कहावत है “ हंड़िया के मुंह ला तो परई मा तोप सकथस फ़ेर मनखे के मुंह ला कामे तोपबे ” इसलिए इस मिलन को भंजाया गया।
  2. चाहता तो सब समय फ्रिज़ का पीना पी सकता , लेकिन मटकी के पानी और मटकी वाले हंड़िया के बीच पले-बढ़े सिदो हैम्ब्रम को फ्रिज़ के बर्फीले पानी से असुविधा होती.
  3. हंड़िया की गंध हालांकि उन दो दिनों में भी खूब आती थी , इतनी ही कि बस्ती से गुज़रते हुए छठव्रती ना चाहते हुए भी नाक पर हाथ रख दिया करते।
  4. सूरज की स्थिति का यह लोकरंग है कि कार्तिक का दिन महीना बात करते बीत जाता है , अगहन के दिन खाने की हंड़िया चढ़ाते और पूस के कान का मैल निकालते बीत जाते हैं।
  5. किसकी लिखी हुई यह कविता है , स्मरण नहीं परन्तु इसके समांतर गांवों में अनेक लोक कविताएं आज भी जीवन्त हैं- ‘ कातिक बाति कहातिक , अगहन हंड़िया अदहन / पूस काना ठूस / माघ तिलै तिल बाढ़ै / त फागुन गोड़ी काढ़ै।
  6. उनकी इस फिल्म में गांव वालों के बीच सतनामी समाज के धर्म गुरू अपने प्रवचन में संत कबीर के एक दोहे का उल्लेख करते हुए कुछ इस तरह लोगों को समझाते हैं - कुम्हार किसिम किसिम के हंड़िया बनाथे , सब्बेच माटी एकेच्च हे।
  7. मैंने सनकी बुड्ढे की कुहनी छूकर मचलते हुए कहा , ‘दादा, मैं ठेठ पूरब का बिहारी बच्चा, इतना उत्तरांतर किस जोम में जाता? आपको ग़लतफ़हमी हो रही है!' दादा दाढ़ी का खूंटा सहलाते रहे, मेरी ओर देखा तक नहीं, बोले, ‘तुमने हांड़ी भर हंड़िया पी रखी थी, तोमको कोच्छ याद नहीं..
  8. तमाम दूसरी औरतों की तरह कोई अपना निजी नाम नहीं था उनका प्रेम या क्रोध के नितांत निजी क्षणों में भी बस जगन की अम्मा थीं वह हालांकि पांच बेटियां भी थीं उनकीं एक पति भी रहा होगा जरूर पर कभी जरूरत ही नहीं महसूस हुई उसे जानने की हमारे लिये बस हंड़िया में दहकता बालू और उसमे खदकता भूजा था उनकी पहचा न .
  9. विश्व की इस सर्वोतम तीर्थ नर्मदा के किनारे स्थित हे पर सर्वोतम सेवाश्रम “ श्री विमलेश्वर महादेव आश्रम , नयापुरा रोड़ , पोस्ट हंड़िया जिला हरदा ( मध्यप्रदेश , भारत ) ” जो दिल्ली मुम्बई रेलमार्ग पर हरदा जंकशन से हाईवे नम्बर ५ ९ ए पर हरदा इन्दौर सड़क मार्ग पर हरदा से २ ० किलोमीटर पर श्री नर्मदा का नाभिक्षेत्र मे दक्षिण तट पर स्थापित है।
  10. ये वो प्रणालियां हैं जो कि लोकतंत्र को सही तरीके से चलाने के लिये बनाई गयी थीं लेकिन स्वार्थ की दीमक ने इन्हें चाट कर खोखला कर डाला लेकिन सूचना का अधिकार शायद एक मल-मूत्र भरी हंड़िया की तरह हो गया है जिससे हर आदमी बचना चाह रहा है चाहे वो न्यायपालिका हो , कार्यपालिका हो या फिर विधायिका बल्कि मेरा तो विचार है कि मीडिया को भी इस दायरे में लाना चाहिये और साथ ही उन तमाम NGOs को भी जो मलाई छान रहे हैं अपने मंत्री चाचा या मामा के कारण।
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