हक़ीक़तन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मगर कुछ भी तो नहीं पास सिवा ख़्वाबों के वो ख़्वाब जो हक़ीक़तन कभी गुज़र न सके तुझे खुद अपने हाथों से मिटा के सोचता हूँ कोई एक ख़्वाब फिर देखूं कि जो बिखर न सके . ..
- केन्द्र व राज्य सरकार की तरफ़ से जो भी योजनाएं या कार्यक्रम जारी की जाती है हक़ीक़तन वह बुनकर समुदाय के लम्बरदारों तक ही करघे पर बुनाई में लीन एक नौजवान कारीगर सिमट कर रह जाती है।
- मगर कुछ भी तो नहीं पास सिवा ख़्वाबों के वो ख़्वाब जो हक़ीक़तन कभी गुज़र न सके तुझे खुद अपने हाथों से मिटा के सोचता हूँ कोई एक ख़्वाब फिर देखूं कि जो बिखर न सके . ..
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ‘बेताब‘ या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण ‘पढ़ीस‘ की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए4 प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया , जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ' बेताब' या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण 'पढ़ीस' की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए[4] प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया, जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ' बेताब' या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण 'पढ़ीस' की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए[4] प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया, जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- अब में यहाँ पर चंद ऐसी मिसालेें पेश करता हूँ जो हक़ीक़तन तो मुवाफिक हैं मगर बादी उन्जर मंे खिलाफ मालूम होती हैं यानी चंद ऐसे जानवर हैं जो पैदा होते ही दाने चुगते नजर आते हैं मगर गोर करने से यह राज खुल जाता है।
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ' बेताब ' या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण ' पढ़ीस ' की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए [ 4 ] प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया , जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- मतलब छाबरा सर ! श्री हरमिंदर सिंह जी छाबरा ! facebook के मार्फ़त बने कहने को fb-friend , लेकिन हक़ीक़तन मेरे बड़े , मेरे अभिभावक सामान ! मेरे दार जी ! भाई ! भईया ! जीजाजी !!! यदि उन्हें पता चल जाय कि अभी मैं हरिद्वार में हूँ तो ...
- हुजूम-ए-दर्द को दे और वुस ' अतें दामन तो क्या अभी मेरी आँखें भी नम नहीं ज़ाहिद कुछ और हो न हो मयख़ाने में मगर क्या कम ये है कि शिकवा-ए-दैर-ओ-हरम नहीं शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं मर्ग-ए-ज़िगर पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़ इक सानिहा सही मगर इतनी अहम नहीं